________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
अनुसार वह बोलता है। अपने पास अभी जो सिद्धांत है, मन उसी के अनुसार चलना चाहिए। मन का कहा नहीं मानना है। सामायिक में चलन, मन का
१५६
प्रश्नकर्ता : सामायिक में बैठना अच्छा नहीं लगता । गुल्ली मारने का मन करता है।
दादाश्री : मन भले ही चिल्लाता रहे लेकिन तुझे क्या लेना देना ? तेरे सिद्धांत से विरुद्ध चल रहा है ? चल रहा है, तो चलन उसी का है अभी भी । वह मना करे तो तुम्हें क्या ? वह तो सामायिक ही नहीं करने देगा।
प्रश्नकर्ता : पहले शुरूआत में मैं एक-दो साल रेग्युलर सामायिक करता था । वह मुझे अच्छा लगता था, तब।
दादाश्री : तो तू, 'पसंद-नापसंद' वही मार्ग पर है न? ऊपर से कह रहा है कि मुझे अच्छा लगता था ! मन की सुने वह इंसान ही नहीं कहलाएगा, वह मशीनरी नहीं कहलाएगा तो और क्या कहलाएगा? खुद का चलन नहीं है ? तुम लोग पुरुष बने हो न?
मन अगर सत्संग में आने के लिए मना करे तो क्या करोगे ? वहाँ मन की मानते हो? ऐसे मानोगे तो फिर भटक जाओगे न ! रहा ही क्या फिर? जानवर भी उसकी सुनते हैं और तुम भी उसकी सुनते हो। कईं बार मन के विरुद्ध करते हो या नहीं ?
प्रश्नकर्ता: कईं बार ।
दादाश्री : अच्छा है। जो मन के चलाने से चले, वह तो मिकेनिकल कहलाता है। अंदर पेट्रोल भर दे तो मशीन चलती रहती है। क्या तुझे भी ऐसा होता है ? तब तो तुझे शादी नहीं करनी होगी, फिर भी शादी करवा देगा !
प्रश्नकर्ता : इसमें ऐसा नहीं होगा।