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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : अब हम यहाँ से कहीं भी नहीं भागेंगे।
दादाश्री : अरे, लेकिन मन के कहे अनुसार चलनेवाला इंसान यहाँ से नहीं जाएगा, वह किस गारन्टी के आधार पर ? अरे, लो, मैं ज़रा दो दिन तक तेरा पानी हिलाता हूँ । अरे ! छपछपाऊँ न, तो परसों ही तू चला जाएगा! यह तो तुझे पता ही नहीं है। तुम लोगों के मन का क्या ठिकाना ? बिल्कुल बिना ठिकाने का मन। खुद के सेन्टर में भी नहीं खड़ा है। मन के कहे अनुसार ही तो चल रहे हो अभी भी । यह 'नहीं भागेंगे, नहीं भागेंगे', वह सिर्फ कहने के लिए ही लेकिन अभी तो न जाने क्या करोगे ? स्ट्रोंग इंसान तो कौन कहलाता है कि जो किसी की भी नहीं माने । मन की या बुद्धि की, या अहंकार की या फिर कोई भगवान आ जाएँ, तो उनकी भी नहीं माने। तुम लोगों की तो बिसात ही क्या ? तू मुझसे कह रहा था कि, 'स्मशान में जाऊँ फिर भी मन आपत्ति नहीं उठाता ।' लेकिन और कहीं मन आपत्ति उठाए कि वहाँ नहीं जाना है, तो नहीं जाता ?
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प्रश्नकर्ता : मैंने यहाँ दादा के पास आकर जो निश्चय किया है, उस बारे में मन की कभी नहीं सुनी है।
दादाश्री : ऐसा ? मन सीधा बोलता भी है ?
प्रश्नकर्ता : हाँ, सीधा बोलता है।
दादाश्री : उल्टा नहीं बोला है, इसलिए। थोड़ा-बहुत उल्टा बोलेगा, उसे तुम नहीं सुनोगे, लेकिन अगर सात दिन तक तुम्हें छोड़े नहीं और वापस अंदर कहे, ' यह ज्ञान वगैरह मिल गया है, अब कोई हर्ज नहीं है। लोगों में अपनी बहुत वैल्यू है। ऐसा है, वैसा है।' सब समझा-बुझाकर चलाएगा तुम्हें !
प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं होगा अब ।
दादाश्री : बाद में तुम्हें नुकसान नहीं हो, इसलिए हम सावधान