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वजह से ही विषय टिका हुआ है। ज्ञान से सबकुछ चला जाएगा! विषय का विचार तक नहीं रहेगा!
मन का स्वभाव कैसा है? साल, दो साल किसी चीज़ से अलग रहे कि वह चीज़ विस्मृत हो जाती है, हमेशा के लिए!
वाम मार्गी क्या सिखाते हैं कि जिस चीज़ को एक बार जी भरकर भोग लेने पर ही उससे छूटा जा सकता है। विषय के बारे में तो बल्कि
और ज़्यादा सुलगता जाता है। शराब से संतुष्ट होकर क्या उससे छूटा जा सकता है?
विषय के बारे में अगर कंट्रोल करने जाए तो वह और ज़्यादा उछलता है। मन को खुद कंट्रोल करने जाएगा तो नहीं हो सकता। कंट्रोलर ज्ञानी होने चाहिए। सचमुच तो मन को रोकना नहीं है। मन के कारणों को रोकना है। मन तो खुद ही एक परिणाम है। उसे बदला नहीं जा सकता। कारण बदले जा सकते हैं। कौन से कारण से मन विषय में चिपका है, उसे ढूँढकर उससे छूटा जा सकता है।
ज्ञानी चीज़ों को वासना नहीं कहते, रस(रुचि) को वासना कहते हैं। आत्मज्ञान के बाद वासनाएँ चली जाती हैं।
स्त्री से संबंधित वासनाएँ क्यों नहीं जातीं? जब तक 'मैं पुरुष हूँ' और 'वह स्त्री है', ऐसी मान्यता है, तब तक वासनाएँ हैं। वह मान्यता अगर निकल जाए तो वासना को जाना ही पड़ेगा! वह मान्यता जाएगी कैसे? जिसे वासनाएँ हैं, उससे आप खुद अलग ही हो, खुद कौन है, जब यह ज्ञान हो जाएगा, भान हो जाएगा, तभी वह छूट सकेगा। और ज्ञानी की कृपा से ज्ञान हो सकता है!
३. माहात्म्य ब्रह्मचर्य का ब्रह्मचर्य पालन नहीं किया जा सके तो कोई बात नहीं, लेकिन उसके विरोधी तो बनना ही नहीं चाहिए। अध्यात्म मार्ग में ब्रह्मचर्य, वह सबसे बड़ा एवं सबसे पवित्र साधन है! नासमझी से अब्रह्मचर्य टिका हुआ है। ज्ञानी की समझ से समझ लेने पर वह रुक जाता है। व्यवहार में भी मन-वाणी और देह नॉर्मेलिटी में रहें, उसके लिए ब्रह्मचर्य को
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