________________
विषय विचार परेशान करें तब... (खं-2-४)
१४३
जाती है। संयोग नहीं मिलें तब तक अच्छा रहता है, लेकिन मिल जाएँ तब सारा माल निकलता है।
दादाश्री : नहीं, लेकिन यह जो बात तू कर रहा है न, वह सब के लिए नहीं है। यह सिर्फ तेरे लिए है। किसी और की बात नहीं है। तुझे जैसा ठीक लगे, उस अनुसार कर ले ताकि झंझट मिटे। फिर औरों का कोई झंझट नहीं। इससे तो दूसरों के मन बिगड़ते हैं फिर। क्या होगा फिर? अच्छा लगे, तब? अच्छा लगे, तब तक हम कुछ नहीं कह सकते। मालिक भी कहता है कि अच्छा लग रहा है और अच्छा लगनेवाला कहता है कि अच्छा लग रहा है। दोनों ऐसा कहेंगे तो फिर क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : जो अच्छा लगे उसे खत्म करना पड़ेगा न?
दादाश्री : यह तो अच्छा लगनेवाला कहता है, 'मुझे पसंद है' और मालिक कहता है, 'पसंद नहीं है' यदि इन दोनों में संघर्ष हो तो खत्म कर सकते हैं। यह तो संघर्ष नहीं है, एक मत है, फिर कैसे खत्म करेंगे?! मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा मियाँ काज़ी? फिर काज़ी साहब क्या करेंगे?!
प्रश्नकर्ता : लेकिन फँसना तो अच्छा नहीं लगता मुझे। इस विषय में फँसना मुझे अच्छा नहीं लगता।
दादाश्री : देख अब क्या कह रहा है, पहले क्या कह रहा था, अभी?
प्रश्नकर्ता : वे जो विचार आते हैं, वे अच्छे लगते हैं, वे उतने समय के लिए ही। फिर बाद में....
दादाश्री : आत्महत्या करना अच्छा लगता है लेकिन मरना नहीं है! एक दिन करके तो देख!
प्रश्नकर्ता : वह जोखिमदारी है। उसके लिए सारी मार खानी पडेगी न! कभी ऐसे। फिर ऐसा विचार आता है कि इस पुद्गल