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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : आज्ञा का पालन नहीं हो सका तो क्या करना चाहिए फिर?
दादाश्री : वह तो उसने मिर्च खाई, इसलिए फिर रोग बढ़ा। प्रश्नकर्ता : लेकिन उसका उपाय तो होना चाहिए न? दादाश्री : प्रतिक्रमण करना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जिन्होंने आज्ञा दी है, उन्हें कहना तो पड़ेगा न?
दादाश्री : हाँ। कह दो फिर भी वे प्रतिक्रमण करने को कहेंगे। और क्या कहें? रूबरू प्रतिक्रमण कर।
कभी अगर अंदर कोई खराब विचार उग आए और निकाल देने में देर हो जाए तो उसका बड़ा प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। वह तो जब विचार उगे कि तुरंत निकाल देना है, फेंक देना है।
प्रश्नकर्ता : पहले ऐसी स्थिति थी कि मैं इन सबसे अलग हो जाऊँ न, तो ब्रह्मचर्य रह ही नहीं पाता था, ऐसी स्थिति हो गई थी। ज़रा सा भी इस समूह से जुदा रहूँ या अकेला घर पर रहूँ न तो सभी विचार घेर लेते थे।
दादाश्री : विचार घेर लेते हैं, उसमें अपना क्या जाता है? हम देखनेवाले हैं उसे! होली में क्यों हाथ नहीं डालते? होली का दोष निकाले, वह गलत है न! दोष तो, अगर तुम हाथ डाल दो, उसे कहते हैं।
विचार तो सभी तरह के आ सकते हैं। मच्छर घेर लेते हो, उन्हें हम यों-यों करे तो नहीं रहेंगे। इसमें तो हाथ दर्द करता है, लेकिन कुदरत का हाथ तो दुःख ही नहीं सकता। हम कहें कि मच्छर छूने नहीं देना है, तो अंदर वैसा ही हो जाएगा। ऐसा निश्चय करो तब कैसा सुंदर ब्रह्मचर्य पालन किया जा सकेगा!!