________________
दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३)
अंदर जलन पैदा होगी न, तो अपने आप पकड़ में आ जाएगी । अब तो अनुभव शुरू होगा न। पहले परीक्षा देते हैं और उसके बाद अनुभव शुरू होता है न!
१२३
प्रश्नकर्ता : चोर नीयत नहीं होगी, तो फिर विचार आना बिल्कुल बंद हो जाएगा ?
दादाश्री : नहीं, भले ही विचार आए । विचार आए, तो उसमें हमें क्या हर्ज है? विचार बंद नहीं होंगे। चोर नीयत नहीं होनी चाहिए, अंदर भले ही कैसा भी लालच हो लेकिन उस पर ध्यान न दे, स्ट्रोंग ! विचार आएँगे ही कैसे ?
प्रश्नकर्ता : अभी भी नीयत थोड़ी चोर है।
दादाश्री : चोर नीयत हो, उसे भी खुद जाने ।
प्रश्नकर्ता : फिर कभी कभार बहुत विचार फूटते हैं, वह क्या है ?
दादाश्री : विचार भले ही लाखों फूटें, फिर भी... प्रश्नकर्ता : फिर हमें जो अंदर सुख रहता है, वह कम हो जाता है।
दादाश्री : वह सुख कम होता है, तब वह तपता है, लाललाल हो जाता है। वह तो, उस घड़ी तप करना पड़ता है न? सुख कम हो जाए तो क्या दुःख मोल लेना है ?
प्रश्नकर्ता : इसलिए मैंने पूछा कि वह 'नीयत चोर' है इसलिए होता है।
दादाश्री : नीयत चोर नहीं है। इसमें तो क्षत्रियता चाहिए, क्षत्रियता! चितौड़ के राणा क्या कहते थे ? नहीं झुकूँगा, झुकूँगा ही नहीं। उसने राजगद्दी छोड़ दी लेकिन झुका नहीं । भाग गया लेकिन झुका नहीं। नहीं तो बादशाह ने तो कह दिया कि, 'यदि आप