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विषय, वह तो संडास है, गलन (डिस्चार्ज होना, खाली होना) है! इसमें भी तन्मयाकार हो जाता है इसलिए उसमें से नए कॉज़ेज़ डलते हैं! यदि विषय का पृथक्करण करे तो वह दाद को खुजलाने जैसा है!
अरे रे! अनंत जन्मों से यही किया?!! इस गटर को कैसे खोला जा सकता है? निरी दुर्गंध, दुर्गंध और दुर्गंध!! श्रीमद राजचंद्र ने विषय को, 'वमन करने योग्य जगह भी नहीं है,' ऐसा कहा है! 'थूकने जैसा भी नहीं है वहाँ!'
विषय बुद्धि की वजह से नहीं है, मन की ऐंठन की वजह से है, इसलिए बुद्धि से उसे दूर किया जा सकता है।
___ प्याज की गंध किसे आती है? जो नहीं खाता हो, उसे! जिस तरह आहारी आहार करता है, उसी तरह विषयी विषय करता है! लेकिन वह लक्ष्य में रहना चाहिए न? लेकिन अज्ञानता के आवरण की वजह से लक्ष्य में नहीं रह पाता। चार दिन का भूखा बासी गंदी रोटी भी खा जाता है! आजकल के लोग तो इतने बदबूदार होते हैं कि यदि ज़रा भी नज़दीक आ जाएँ तो अपना सिर फट जाए। तभी तो ये सब परफ्यूम्स छिड़कते रहते हैं, चौबीसों घंटे!
विषय में सुख होता तो चक्रवर्ती राजा इतनी सारी रानियाँ होने के बावजूद सबकुछ छोड़कर सच्चे सुख की तलाश में निकल नहीं पड़ते ! ___जीवन किसलिए है ? संसार बसाकर मरने के लिए?! सुख के लिए या ज़िम्मेदारियाँ खड़ी करके बीमारियों को न्यौता देने के लिए? इतने पढ़ेलिखे लेकिन पढ़ाई का उपयोग क्या है? मेन्टेनन्स के लिए ही न? इस इन्जन से कौन सा काम करवा लेना है? कुछ हेतु तो होना चाहिए न? इस मनुष्य जन्म का हेतु क्या है? मोक्ष! लेकिन अपनी दिशा कौन सी और चल रहे है कहाँ?!!
चोट लगी हो और खून बह रहा हो तो हम उसे बंद क्यों करते हैं ? बंद नहीं करेंगे तो? तब तो वीकनेस आ जाएगी ! उसी तरह यह विषय बंद नहीं होने से शरीर में बहुत वीकनेस आ जाती है! ब्रह्मचर्य को पुद्गलसार (जो पूरण और गलन होता है) कहा गया है! इसलिए उसे
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