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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
हिसाब देखें, तब जाकर सही है!
प्रश्नकर्ता : यानी ऐसा दस साल तक रहना चाहिए?!
दादाश्री : दस साल नहीं, चौदह साल तक रहना चाहिए, राम वनवास गए थे उतने साल!! चौदह साल बीत गए, तब जाकर राम मज़बूत हुए। इसलिए तो हम कहते हैं कि हमारी आज्ञा और साथ में इस ज्ञान को सिन्सियरली एक्जेक्टनेस में रखे तो ग्यारह साल या चौदह साल में पूर्णाहुति हो जाएगी।
कहीं पोल को पोषण तो नहीं मिलता न? प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य ‘स्वभाव में होना' मतलब क्या?
दादाश्री : ब्रह्मचर्य ‘स्वभाव में रहना' यह शब्द कहाँ से ले आया तू? आत्मा स्वभाव से ही ब्रह्मचारी है, आत्मा को ब्रह्मचारी होने की ज़रूरत नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता : आपने वह बात कही थी कि पिछले जन्म में जो भावना की हो, अभी वह उसके उदय में आ जाए तो वह ब्रह्मचर्य पालन करता है।
दादाश्री : वह तो जो भावना पहले आई हो, जो पहले 'प्रोजेक्ट' की हो, उसी अनुसार अभी उदय आता है। जैनों के बेटे-बेटियाँ जो दीक्षा लेते हैं, तूने वह देखा है क्या? बीस साल का लड़का होता है, पढ़ा-लिखा होता है, धनवान होता है, वह दीक्षा ले लेता है। उसका क्या कारण है ? पिछले जन्मों में उन्होंने दूसरे साधु-साध्वियों के संग में रहने से ऐसी भावना की थी
और जैनों में ऐसा रिवाज है कि उनके बेटे-बेटी ऐसी दीक्षा लें तो उन्हें बहुत आनंद होता है, 'ओहोहो! उसके आत्मा का कल्याण कर रहा है। हमें तो मोह है और उसका मोह चला गया है।' इसलिए वे लोग तो बेटे की हेल्प करते हैं ! जबकि अपने लोग तो हेल्प नहीं करते। अपने यहाँ तो ऐसा कहते हैं