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दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३)
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ये भाई कह रहे थे कि 'मैं पक्का वहाँ आ जाऊँगा लेकिन यदि नहीं आ पाऊँ तो निकल जाना।' तो हम समझ गए कि इन्होंने कच्चा निश्चय किया है, उसकी वजह से आगे जाकर एविडेन्स ऐसे मिलेंगे कि तय किए अनुसार नहीं हो पाएगा।
अतः हमें निश्चय करना है, ऐसा तय करना, लेकिन कभी कभार संयोग वापस भुला देते हैं। अब अगर वे भाई यदि निश्चय से कहते कि 'मैं आ ही रहा हूँ।' तो आगे जाकर निश्चय को टाइमिंग मिल जाता और यहाँ आ पाते। इसलिए जो निश्चय किया है, वह आगे एविडेन्स खड़े करता है। हमें निश्चय करना है, लेकिन यदि संयोग उसे भी भुला दें तो समझना कि व्यवस्थित! यह तो यदि खुद की सारी सत्ता यदि हाथ में आ जाए तब तो तू व्यवस्थित को भी नचाएगा! लेकिन ऐसी सत्ता है नहीं न!
पकड़े रखे निश्चय को ठेठ तक....
निश्चय शक्ति तो सबसे बड़ी शक्ति है, नदी पार करनी है या नहीं? तो कहता है, करनी है! पार करनी है मतलब करनी है और नहीं तो नहीं! उन विषय के विचारों पर प्रतिक्रमण का ज़ोर रखना और अब संभाल लोगे तो अंदर जो फ्रैक्चर हो गया है, वह ठीक हो जाएगा।
तुझे 'उपादान' जागृत रखना है और हम तो 'निमित्त' हैं। हम आशीर्वाद देते हैं, वचनबल रखते हैं, लेकिन निश्चय संभालना तेरे हाथ में है। यह ज्ञान मिला है, अर्थात ऐसा ऊँचा पद मिला है कि कोई भी तय किया हुआ काम हो सकता है। और किसी जगह पर जोखिम नहीं है। सिर्फ यही एक जोखिम है और 'इस' तरफ पैर रखा कि मुक्ति! यदि आपका निश्चय नहीं डिगे तो काम हो जाएगा, अतः दिन-रात यही एक स्क्रू टाइट करते रहना। चाय पी ली कि वापस टाइट करना। क्योंकि जगत् की विचित्रता का अंत नहीं है। कब फँसा दे, यह कह नहीं सकते।