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उपोद्घात
खंड - १ विषय का स्वरूप, ज्ञानी की दृष्टि से
१. विश्लेषण, विषय के स्वरूप का विषय किसे कहते हैं? जिस चीज़ में लुब्ध हो जाएँ, उसी को विषय कहते हैं। अन्य सबकुछ ज़रूरतें कहलाती है। खाना-पीना, वह विषय नहीं है।
विषय के कीचड़ में क्यों पड़ता है, वही समझ में नहीं आता। पाँच इन्द्रियों के कीचड़ में मनुष्य जो कि ऐश्वर्य प्राप्तिवाला ईश्वर कहलाता है, वह क्यों पड़ा हुआ है?! जानवर भी इसे पसंद नहीं करते।
। भगवान महावीर ने इस काल के मनुष्यों को ब्रह्मचर्य नामक यह पाँचवा महाव्रत क्यों दिया? क्योंकि इस काल के लोग विषय का इतना भारी आवरण लेकर आए हैं कि उन्हें इसकी अभानता में से बाहर निकालकर मोक्ष में ले जाने के लिए, यह पाँचवा महाव्रत दिया!
विषय, वह विकृति है! मन को बहलाने का साधन बनाया है! पूरे दिन धूप से तप्त भैंसें गंदे कीचड़ में क्यों पड़ी रहती हैं ? ठंडक की लालच में दुर्गंध को भूल जाती हैं ! उसी तरह आज के मनुष्य दिन भर की भागदौड़ की थकान से तंग आकर, नौकरी-व्यापार या घर के टेन्शन में, अत्यंत मानसिक तनाव भुगतते हुए, अंतरदाह में से डाइवर्ट होने के लिए विषय के कीचड़ में कूद जाते हैं और उसके परिणाम भूल जाते हैं! विषय भोगने के बाद अच्छे से अच्छा शूरवीर मुर्दे जैसा हो जाता है। क्या पाया उसमें से?
विषय ज़हर है, ऐसा जानने के बाद फिर क्या कोई उसे छूएगा? जगत् में भय रखने जैसा यदि कुछ हो तो वह, यह विषय ही है! इन साँप, बिच्छू, बाघ और शेर से कैसे घबराते हैं ? विषय तो उनसे भी अधिक विषमय है। जिसका भय रखना है उसी को लोग परम सुख मानकर भोगते हैं! विपरीत मति की परिधि क्या?
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