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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दो-चार बार गटर का ढक्कन खोलना होता है, फिर पता नहीं चलेगा कि अंदर क्या है? बाद में वैसा गटर आए तो पता नहीं चलेगा? शायद दो-चार बार गलती हो जाए, लेकिन बाद में तो ध्यान रहेगा न?
प्रश्नकर्ता : तो यह प्रयोग कन्टिन्युअस रखना है? थ्री विज़न
का?
दादाश्री : नहीं, यह ऐसा ही है! ये तो कपड़ों से ढककर घूमते हैं इसलिए सुंदर दिखते हैं, बाकी अंदर तो ऐसा ही है। यह तो, मांस को रेशमी चादर से बाँध लिया है, इसलिए मोह होता है। सिर्फ मांस होता तो भी हर्ज नहीं था, लेकिन अगर अंदर आंते वगैरह सब काटें तो क्या निकलता है अंदर से? इस पर सोचा ही नहीं है। यदि इस पर सोचा होता तब तो वहाँ पर फिर से दृष्टि जाती ही नहीं। यह तो भ्रांति से मूर्खता में इंसान ने सुख की कल्पना की है। सभी ने कल्पना की, इसलिए इसने भी कल्पना कर ली, ऐसे चला है! सत्तर-अस्सी साल की स्त्री के साथ तू शादी करेगा क्या? क्यों नहीं? लेकिन उसके अंग आदि अच्छे दिखते हैं या नहीं? वह सब देखने का मन ही नहीं करता न?
प्रश्नकर्ता : ऐसा कोई रास्ता नहीं है, शॉर्टकट ही नहीं है कि थ्री विजन से पहले ही आरपार साफ दिखे? ।
दादाश्री : यही शॉर्टकट है! सबसे बड़ा शॉर्टकट ही यह है न! इस थ्री विज़न से अभ्यास करते-करते आगे बढ़ेगा तो 'जैसा है वैसा' उसे दिखेगा, फिर विषय छूट जाएगा। थ्री विज़न सिवा का रास्ता, उल्टे रास्ते पर चलने का शॉर्ट रास्ता है। वर्ना अगर शादी करनी है तो किसने मना किया है? आराम से शादी करो न! किसने बाँधा है तुम्हें ?
हमें सबकुछ आरपार दिखता है। यह ज्ञान ऐसा है कि कभी