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किस समझ से विषय में... (खं-2-1)
दादाश्री : यदि जागृति ज़्यादा हो तो, गलती हो जाने के बाद भी पता नहीं चले, ऐसा नहीं होता बल्कि गलती होने से पहले ही पता चल जाता है और वह चीज़ वापस हो भी सकती है, लेकिन खुद को पहले ही पता चल जाता है और उसके बाद गलती होती है। मतलब कि चीजें नहीं रुकती लेकिन जागृति ज़्यादा हो तो पहले से पता चल जाता है।
प्रश्नकर्ता : यदि हमें निरंतर ब्रह्मचर्य में रहना हो तो जागृति बहुत ज़्यादा होनी चाहिए न?
दादाश्री : जागृति, वही आत्मा है और खुद यदि सो जाए तो दूसरे काम हो जाते हैं। अतः जागृति में कोई भी गलत काम नहीं होता और दूसरी गड़बड़ नहीं है न ज़्यादा, लेकिन गड़बड़ नासमझी से खड़ी हो गई हैं तो मार खानी पड़ती है न?
प्रश्नकर्ता : यदि खुद विषय में सहमत नहीं होगा तो बचा जा सकता है, उस दिन ऐसी बात हुई थी। तो उसमें खुद की स्थिरता कैसे आ सकती है?
दादाश्री : हाँ लेकिन सहमत यानी कि निश्चय में से कभी भी सहमति न छूटे। ऐसी सहमति हो तो फिर कुछ नहीं होगा, लेकिन वह छूटे बिना रहता नहीं है न! क्योंकि कर्म के उदय से जब ऐसा होना होता है, तब निश्चय छूट जाता है और ऐसा हो जाता है। इसलिए तुझे क्या करना है? कि तुझे तो सिर्फ जागृति ही रखनी है कि 'इसमें कभी भी नहीं!' सहमति नहीं छूटे, उसके लिए ‘केयरफुल' रहना पड़ेगा, फिर भी अगर उसके बाद गिर गए तो उसमें हर्ज नहीं है। हमें गाड़ी में से नहीं गिरना है, फिर भी गिर गए तो उसे हम 'व्यवस्थित' कहते हैं न? लेकिन क्या जानबूझकर कोई गिरता है?
आँखें गड़ाएँगे तो दृष्टि बिगड़ेगी न किसी भी एक तरफ हृदय तो लगा ही रहता है, या तो