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हुआ सो न्याय
कुदरत तो हमेशा न्यायी ही है । जो कुदरत का न्याय है, उसमें एक क्षण के लिए भी अन्याय नहीं हुआ। यह कुदरत जो है, वह एक क्षण के लिए भी अन्यायी नहीं हई। कोर्ट में अन्याय हुआ होगा, लेकिन कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं।
यदि कुदरत के न्याय को समझोगे कि 'हआ सो न्याय', तो आप इस जगत् में से मुक्त हो पाओगे वर्ना कुदरत को ज़रा-सा भी अन्यायी समझा तो वह आपके लिए जगत् में उलझने का ही कारण है। कुदरत को न्यायी मानना, उसका नाम ज्ञान। 'जैसा है वैसा' जानना, उसका नाम ज्ञान और 'जैसा है वैसा' नहीं जानना, उसका नाम अज्ञान।
जगत् में न्याय ढूँढने से ही तो पूरी दुनिया में लड़ाइयाँ हुई हैं। जगत् न्याय स्वरूप ही है। इसलिए इस जगत् में न्याय ढूँढना ही मत। जो हुआ, सो न्याय। जो हो गया वही न्याय। ये कोर्ट आदि सब बने वे, न्याय ढूँढते हैं इसलिए! अरे भाई, न्याय होता होगा?! उसके बजाय क्या हुआ' उसे देखो! वही न्याय है। न्याय-अन्याय का फल, वह तो हिसाब से आता है और हम उसके साथ न्याय जॉइन्ट करने जाते हैं, फिर कोर्ट में ही जाना पड़ेगा न!
आपने किसी को एक गाली दी तो फिर वह आपको दो-तीन गालियाँ दे देगा, क्योंकि उसका मन आप पर गुस्सा होता है। तब लोग क्या कहते हैं? तूने क्यों तीन गालियाँ दी, इसने तो एक ही दी थी। तब उसमें क्या न्याय है? उसका हमें तीन ही देने का हिसाब होगा, पिछला हिसाब चुका देते हैं या नहीं? कुदरत का न्याय क्या है? जो पिछला हिसाब होता है, वह सारा इकट्ठा कर देता है। अब यदि कोई स्त्री उसके पति को परेशान कर रही हो, तो वह कुदरती न्याय है। उसका पति समझता है कि यह पत्नी बहुत खराब है और पत्नी क्या समझती है कि पति खराब है। लेकिन यह कुदरत का न्याय ही है।
वह तो इस जन्म की पसीने की कमाई है, लेकिन पहले का सारा
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