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प्रश्रकर्ता : 'मैं कौन हूँ' यह जानने की जो बात है, वह इस संसार में रहकर कैसे संभव हो सकती है?
दादाश्री : तब कहाँ रहकर जान सकते हैं उसे? संसार के अलावा और कोई जगह है कि जहाँ रह सकें? इस जगत् में सभी संसारी ही हैं और सभी संसार में ही रहते हैं। यहाँ 'मैं कौन हूँ' यह जानने को मिले, ऐसा है। आप कौन हैं' यह समझने का विज्ञान ही है यहाँ पर। यहाँ आना, हम आपको पहचान करवा देंगे।
मोक्ष का सरल उपाय
जो मुक्त हो चुके हों वहाँ पर जाकर यदि हम कहें कि 'साहब, मेरी मुक्ति कर दीजिए! वही अंतिम उपाय है, सबसे अच्छा उपाय। 'खुद कौन है' वह ज्ञान नक्की हो जाए तो उसे मोक्ष गति मिलेगी। और आत्मज्ञानी नहीं मिलें तो (तब तक) आत्मज्ञानी की पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
आत्मा साइन्टिफिक वस्तु है। वे पुस्तकों से प्राप्त हों ऐसी वस्तु नहीं है। वह अपने गुणधर्मों सहित है, चेतन है और वही परमात्मा है। उसकी पहचान हो गई यानी हो चुका। कल्याण हो गया और 'वह आप' खुद ही हो!
मोक्ष मार्ग में तप-त्याग कुछ भी नहीं करना होता । ज्ञानीपुरुष मिल जाएँ तो ज्ञानी की आज्ञा ही धर्म और आज्ञा ही तप और यही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है, जिसका प्रत्यक्ष फल मोक्ष है।
'ज्ञानीपुरुष' मिलें तभी मोक्ष का मार्ग आसान और सरल हो जाता है। खिचड़ी बनाने से भी आसान हो जाता है।
५. 'मैं' की पहचान - ज्ञानीपुरुष से?
१. आवश्यकता गुरु की या ज्ञानी की? प्रश्नकर्ता : दादाजी के मिलने से पहले किसी को गुरु माना हो तो? तो वे क्या करें?