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अक्रम मार्ग में ऐसा कहा गया है कि फाइलों का निकाल करो, जो भी हो उनका लेकिन फाइलें बढ़ाने को नहीं कहा है। अतः अंदर से जागृति ऐसी रहनी चाहिए कि चीजें उसे दुःखदाई लगती रहें।
अक्रम ज्ञानी तो परिग्रह होने के बावजूद भी संपूर्ण अपरिग्रही होते है। वह किस प्रकार से? आई विदाउट माइ इज़ गॉड! सभी माइ की ही पच्चर है न!
संक्षेप में, आत्मा तो सहज ही है, अब पुद्गल को सहज कर! किस प्रकार से? जो संपूर्ण सहज हैं, ऐसे ज्ञानी को नज़दीक से देखता रह। उन्हें देखते रहने से ही सहज होते जाते हैं। इसके लिए कॉलेज नहीं होते। लुटेरों के भी कॉलेज नहीं होते। वह तो अगर उस्ताद के पास छ: महीने रहे न, तो उसे देख-देखकर ही लुटेरा बन जाता है ! दादाश्री को जब कोई गालियाँ दे, उस समय अगर उनकी सहजता देखने को मिल जाए तो वह शक्ति अपने में उत्पन्न हो जाती है।
अक्रम विज्ञान, वह पूर्ण सहज योग है, पूर्ण विज्ञान है! अष्टांग योग की पूर्णाहुति हो जाए, तब यह पद प्राप्त होता है! यह अपवाद मार्ग है! जिसे यह मिल गया, उसका काम हो गया!
[६] एक ही पुद्गल को देखना 'पुद्गल संपूर्ण संसारी नाच करे और आत्मा उसे देखे' तभी पूर्णाहुति कहलाती है।
फिल्म सहज होनी चाहिए। संसारी के लिए संसारी की और त्यागी के लिए त्यागी की फिल्म हो तो चलेगा, लेकिन सहज होनी चाहिए। ___ 'यह छोडूं और वह छोडूं,' अरे, छोड़ने की भक्ति करनी है या भगवान की?
इस पुद्गल में से बिल्कुल भी रस नहीं लेना चाहिए। रस (रुचि) कब नहीं लिया जाएगा? खुद संपूर्ण स्वरूप में रहे तब।