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लिया था! कैसे भाव से किए होंगे वे दर्शन ! पूर्वजन्म में गुरु महाराज ने श्रेणिक राजा को जो दृष्टि दी थी, वह और ये दर्शन, दोनों के मिलने से तीर्थंकर गोत्र बंध गया !
[ २.९ ] आयुष्य कर्म
मोमबत्ती को जलाने के बाद वह खत्म होगी या नहीं? उसी प्रकार जन्म लेते ही आयुष्य कम होने लगता है । इसे द्रव्यकर्म कहते हैं । यह कर्म जीव को देह में बाँधकर रखता है । केवलज्ञान होने के बाद भी आयुष्य कर्म रहता है। देह मर जाती है लेकिन खुद नहीं । अगर आयुष्य कर्म लंबा है तो वह पुण्य की वजह से ।
आयुष्य कर्म श्वासोश्वास पर आधारित है, वर्षों पर नहीं। अणहक्क के विषय में, कुचारित्र में सब से अधिक श्वास खर्च हो जाते हैं। उसके बाद हक्क के विषयों में, फिर क्रोध में खूब खर्च हो जाते हैं । लोभ से आयुष्य बढ़ता है। लोभी कम विषयी होता है ।
हर क्षण आठों कर्म बंधते ही रहते हैं। जब दूसरे कर्म बंधते हैं तब उनके साथ आयुष्य कर्म भी बंध जाता है। कर्म के आयुष्य को आयुष्य कहते हैं।
आयुष्य बंधन का नियम - जब २ / ३ आयुष्य बीत जाता है तब पहला बंध पड़ता है। साठ वर्ष का आयुष्य हो तो चालीसवें वर्ष में पहला बंध पड़ता है उसके बाद जो बीस वर्ष बचे हैं उसके २/३, १/३ डिवाइड करतेकरते बंध पड़ता जाता है और पहले का पड़ा हुआ बंध मिटता जाता है।
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मातृ भाववाले का आयुष्य लंबा होता है । किसी को दुःख हो जाए तो वह उसे अच्छा नहीं लगता। ओब्लाइजिंग होता है सदा ।
दूसरों के आयुष्य को हम जितना नुकसान पहुँचाते हैं, उतना ही अपना आयुष्य कम होता जाता है।
[ २.१० ] घाती और अघाती कर्म
मोमबत्ती में चार द्रव्य कर्म होते हैं, अघाती कर्म होते हैं। एक है
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