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कोई चीज़ अगर एक ही बार भोगी जा सके तो उसे भोग कहा जाता है और बार-बार भोगी जाए तो उसे उपभोग कहा जाता है। खाने की चीजें भोग कहलाती हैं और कपड़े उपभोग कहलाते हैं ।
मूल अंतराय ज्ञानांतराय है, उसी की वजह से सभी अंतराय पड़ते हैं। किसी को किसी भी प्रकार का लाभ हो रहा हो और उसे हम रोकें तो उससे लाभांतराय पड़ते हैं ।
तीर्थंकरों में अनंतवीर्य होता है। ज़रा सा हाथ लगा दें तो कहाँ से कहाँ परिवर्तन हो जाता है।
अंतराय कर्म किस तरह टूट सकते हैं? जिस वजह से अंतराय पड़े हैं, उसके विरूद्ध स्वभाव से ही अंतराय टूटते हैं ।
'अंतराय कर्मों के लिए विधि करने से ज्ञानांतराय पड़ जाते हैं, ' दादाश्री ऐसा कहते हैं। ज्ञान की विधि करवाने के बजाय ये अज्ञान की विधि करवाते हैं, उससे ज्ञानांतराय पड़ जाते हैं I
आयुष्य कम हो तो वह आयुष्य कर्म के अधीन है। धर्म में मतमतांतरता की वजह से कई अंतराय पड़ जाते हैं।
सही रास्ते को सही नहीं कहा जाए तो ज्ञान के अंतराय पड़ते हैं। प्रत्यक्ष ज्ञानी मिल जाएँ तो उनके माध्यम से, सभी अंतराय टूट जाते हैं। लेकिन जिसे अंतराय होते हैं उसे तो ऐसा लगता है कि ' अभी क्या जल्दी है?' ‘दादा भगवान का' नाम लेने से भी अंतराय टूटते हैं !
दादाश्री दो घंटों में नकद मोक्ष देते थे फिर भी लोगों को शंका होती थी, 'ऐसा तो कहीं होता होगा? ' यों डाल दिए अंतराय मोक्ष के ! किसी को प्राप्ति हो रही हो तो उसमें अंतराय डाल देते हैं । किसी को दादा के सत्संग में नहीं जाने दे तो उससे बहुत बड़ा अंतराय पड़ जाता
है !
कुछ लोगों को प्रत्यक्ष प्रकट आत्मज्ञानी मिल जाएँ फिर भी मन में ऐसा लगता है कि 'हम तो अपने धर्म का पालन कर रहे हैं या फिर गुरु
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