________________
[२.१४] द्रव्यकर्म + भावकर्म + नोकर्म
३४१
कल्याण ही हो जाए लेकिन वह समझ में आता नहीं है न! अभी भी कितने ही महात्मा नोकर्म को समझते ही नहीं। बड़े-बड़े महात्मा! फिर भी गाड़ी चल रही है। हम जानते हैं कि आगे जाकर समझ ही लेंगे!
हम द्रव्यकर्म कहते हैं न तब ये ऐसा समझते हैं कि अभी पैसे की ज़रूरत पड़ेगी, फिर भी चलता है, गाड़ी चला लेनी है। इसे समझाने जाएँगे तो बिगड़ जाएगा। दादा के सहारे-सहारे यह चल रहा है न!
यह द्रव्य अर्थात् लोग इसे ऐसा समझते हैं, तो इसे मैं चला लेता हूँ। मैंने कहा, 'चलो न, कभी न कभी समझ जाएँगे।' अगर द्रव्य डालें तो कितनी सारी चीजें डालनी पड़ेंगी, टेबल नहीं डालनी पड़ेगी? कई लोग ऐसा समझते हैं कि पूजा वगैरह जो कुछ भी करते हैं न, वे सब द्रव्यकर्म हैं,' कहते हैं कि 'भावकर्म का फल आया है।' यह द्रव्यकर्म नहीं है, यह तो नोकर्म है। वर्ना सब से अच्छा तो इनके जैसा है, कुछ भी जानना करना नहीं है। बस दादा ने जो कहा वही सोना।
विज्ञान से गया भावकर्म ये भावकर्म, द्रव्यकर्म और नोकर्म यह जगत् इन तीन कर्मों पर खड़ा है। तो इस क्रमिक मार्ग के सभी ज्ञानी भावकर्म पर ही हैं और वे भावकों को दिनोंदिन कम करते जाते हैं, क्रमपूर्वक। क्रमिक मार्ग अर्थात् क्रमपूर्वक। अब जैसे-जैसे 'वे' भावकर्म कम करते हैं, जैसे-जैसे भावकर्म कम होते जाते हैं वैसे-वैसे स्वभाव खुलता जाता है। जबकि हमने क्या किया कि भावकर्म पर ही पूरा आधारित है तो उस भावकर्म को ही खत्म कर दिया क्योंकि अगर 'आप' 'चंदूभाई हो', तभी भावकर्म होंगे न?
इस विज्ञान से तो चार कषाय चले ही गए हैं न! इसलिए अब वह भावकर्म रहा ही नहीं। भावकर्म नहीं रहा इसीलिए अगले जन्म के नए द्रव्यकर्म अर्थात् ये जो आठ कर्म हैं, वे नहीं बंधते क्योंकि 'आप' भाव के कर्ता नहीं रहे।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् वह जो बेटरी हमेशा चार्ज होती रहती थी, वह अब चार्ज नहीं होगी?