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[२.१२] द्रव्यकर्म + भावकर्म
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प्रश्नकर्ता : क्या ज्ञानावरणीय कर्म रूपी हैं?
दादाश्री : नहीं, लेकिन मेरा कहना यह है कि क्रमिक में ये लोग द्रव्यकर्म किसे कहते हैं? अगर कोई नसवार सूंघ रहा हो तो उसे द्रव्यकर्म कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, जो दिखाई देता हैं उसे, जो रूपी होता है उसे।
दादाश्री : जो दिखाई देते हैं न उन सभी को, द्रव्यकर्म कहते हैं। अब मैं यह फूल की माला पहनता हूँ तो उसे द्रव्यकर्म कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा ही कहते हैं।
दादाश्री : अब हम क्या कहते हैं कि ये द्रव्यकर्म दो प्रकार के नहीं होते, एक ही प्रकार के होते हैं। द्रव्यकर्म किसे कहते हैं कि जिनमें से भावकर्म उत्पन्न हों और जिनमें से भावकर्म उत्पन्न नहीं होते, वे द्रव्यकर्म नहीं हैं।
अतः अपना यह विज्ञान अलग ही तरह का है। अपना तो सबकुछ क्लियर है न! वे कॉम्प्लेक्स में भले जो भी करते हों, बाकी वह समझ नहीं है, सही बात नहीं है। वे भगवान की बातें नहीं हैं। भगवान की बातें क्लियर हैं। फिर उनके बाद से भले ही कुछ भी हो गया हो। मैं तो सभी को नोकर्म कहता हूँ, ये सभी नोकर्म हैं लेकिन वह अपने विज्ञान के आधार पर है। क्रमिक विज्ञान में कोई फर्क हो तो उसका अलग अर्थ हो सकता है। पॉसिबल है उनमें।
यह अज्ञान से खड़ा हो गया है। अज्ञान चला गया इसलिए यह चल पड़ा है। अज्ञान चला गया है न! ऐसा मानते थे कि 'मैं चंदूभाई हूँ' वह खत्म हो गया न?!
प्रश्नकर्ता : हाँ, बिल्कुल खत्म गया है।
दादाश्री : खत्म हो गया तो बस, तो वही है यह। अतः वहाँ पर क्रमिक है न, इसलिए शायद ऐसे अर्थ की ज़रूरत पड़ भी सकती है कभी।