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[२.१२] द्रव्यकर्म + भावकर्म
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पर 'तू चंदूभाई है' और किस आधार पर तूने घर बनाया और यह किया और वह किया, वह सब किस आधार पर है? वह उपचार व्यवहार से है और अनुपचरित व्यवहार, जिसका उपचार ही नहीं हुआ किसी प्रकार का, ऐसी योजना ही नहीं बनी, डिज़ाइन नहीं बनी, उस अनुपचरित व्यवहार से आत्मा द्रव्यकर्म का कर्ता है। आठ कर्म जो फल देते हैं, उस उपचार से घर-नगर आदि का कर्ता है।
_ 'मैं जा रहा हूँ और आ रहा हूँ' वह उपचार है क्योंकि जो चरित हो चुका है वह उपचरित हो रहा है। चरित में से उपचरित होता है। फंक्शन करना हो तो औपचारिक करना पड़ता है। उपचरित के बाद औपचारिक। चरित तो हो चुका है और अब उपचरित। ऐसा कहते हैं न, 'यह सब उपचार मात्र है।'
'उपचार से घर-नगर आदि का कर्ता है,' यह समझ में आया न आपको और अनुपचर्य वह समझ में आया न? यह नाक-वाक बनाना अगर अपनी ज़िम्मेदारी होती तो कितनी मुश्किल हो जाती! घर-नगर सभी कुछ बना देता है लेकिन सिर पर अगर जोखिमदारी होती तो कितनी मुश्किल हो जाती! इसलिए देखो न, जोखिमदारी के बगैर है न!
'खुद' भावकर्म करता रहता है और शरीर बन जाता है। उस भावकर्म के करनेवाले को पुद्गल के साथ लेना-देना नहीं है लेकिन भाव किया कि तुरंत ही उस अनुसार वैसा पुद्गल बन जाता है।
प्रश्नकर्ता : वे पुद्गल खिंचते हैं?
दादाश्री : हाँ। और वह भी खिंचकर। खिंचने से ही तो तैयार हुए हैं। खिंचे हुए तो हैं ही। अब भाव करते ही बन जाता है। अतः जैसे-जैसे भाव करता है वैसा ही बन जाता है। मतलब यह पता नहीं चलता कि यह सब किस तरह से बन रहा है! पुद्गल की यह डिज़ाइन किस तरह से बन गई? आत्मा जिस भाव की डिज़ाइन करता है न, वैसी ही डिज़ाइन बन जाती है। यह भाव की डिज़ाइनिंग करता है और पुद्गल, पुद्गल की डिज़ाइनिंग करता है। यह जैसे भाव करता है, उस पर से तुरंत ही पुद्गल बन जाता