________________
[२.११] भावकर्म
२८१
तक रहेंगी न, भाव भी रहेंगे न ! कोई कहे कि मुझे आम भाता है, तो उसे लोग क्या कहते हैं? भावकर्म बाँधा। अरे, वह ऐसा नहीं है। भावकर्म इतना आसान नहीं है कि जल्दी से समझ में आ जाए।
प्रश्नकर्ता : तो हृदय में से स्फुरित होनेवाले भावों को ही भावकर्म कहते हैं?
दादाश्री : नहीं, भावकर्म का तो पता ही नहीं चले, ऐसी चीज़ है। वह ऐसी चीज़ है कि उसे समझनेवाला समझ सकता है लेकिन समझाया नहीं जा सकता।
भावकर्म अगर उसे समझ में आ जाए, तभी से ऐसा कहा जाएगा कि उसने पुरुषार्थ प्रारंभ किया, और भावकर्म कब समझ में आता है? जिसे आत्मज्ञान की शुरुआत हुई हो या फिर ज्ञान हो गया हो, उसे समझ में आता है। बाकी यह तो सारा व्यवहार में जो सबकुछ बोलते हैं वैसा ही सब तरह का बोलना है कि मुझे फलाना भाता है, मुझे फलाना भाता है, आग्रह करके खा जाता है, भाव करके खा जाता है, तो उससे भावकर्म का कोई लेनादेना नहीं है।
यह जो समकित हुआ है तो एक दिन अगर अंदर गहराई में उतरोगे तो समझ में आएगा या नहीं आएगा कि यह क्या है? यह कौन करवाता है? वह चीज़ ऐसी नहीं है कि ऐसे समझाई जा सके। हमसे कई लोग पूछते हैं, 'ज्ञान कैसे हुआ?' तो ज्ञान किस तरह से समझाया जा सकता है उसे? वहाँ पर शब्दों का जंजाल होता ही नहीं है।
शुद्ध भाव सुधारे दोनों जन्म प्रश्नकर्ता : भावकर्म का अर्थ क्या है? एक उदाहरण देकर समझाइए
दादाश्री : एक व्यक्ति ऐसा कहता है कि 'मैंने पचास हज़ार रुपए का धर्म दान किया लेकिन अपने मेयर साहब के दबाव की वजह से दिए हैं। वर्ना तो मैं ऐसा हूँ ही नहीं कि किसी को दूं।' किसी के दवाब की वजह