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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
प्रश्नकर्ता : और क्या इन आठ कर्मों का क्षय होने के बाद ही 'सिद्ध' हुआ जा सकता है ?
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दादाश्री : ठीक है, हाँ । अब ये सारे आपके निकाली कर्म हैं । ये चार कर्म हमने कुछ हद तक क्षय कर दिए हैं, और दूसरे जो चार कर्म हैं, वे अब क्षय हो रहे हैं। आपको इस सारी पीड़ा में पड़ने जैसा नहीं है । आप के लिए तो, आप शुद्धात्मा हो, तो चंदूभाई जो करते हैं, उससे आठों कर्म की निर्जरा ही हो रही है।
उन आठ कर्मों से मुक्ति हो जाए न, तो मोक्ष हो जाएगा लेकिन प्रथम मोक्ष, एकदम से वर्तन में नहीं आता । पहले यह बिलीफ बैठती है । हम जो यह ज्ञान देते हैं न, तो उससे बिलीफ बैठती है यानी कि सम्यक् दर्शन होता है लेकिन एकदम से वीतराग चारित्र प्राप्त नहीं हो जाता । चारित्र के वर्तन में आने में टाइम लगता है फिर, लेकिन सब से पहले अगर श्रद्धा बदल जाए तो सबकुछ बदल जाता है। श्रद्धा ही नहीं बदलती। 'मैं चंदूभाई हूँ' अगर वह नहीं बदलेगा तो कब पार आएगा?
बार-बार ऐसे समाधान, शास्त्रों में नहीं होते या गुरु के पास भी नहीं होते। गुरु वगैरह सब यहाँ तक नहीं पहुँच सकते। जो कुछ भी सारा समाधान करते हो वह तो केवल दर्शन से है। मति से, बुद्धि से नहीं पहुँच सकते। बुद्धि नहीं हो तभी यह प्राप्त होता है । एक सेन्ट भी बुद्धि नहीं हो
तब ।
प्रश्नकर्ता : दादा ने द्रव्यकर्म का सब से अंतिम खुलासा दे दिया है। ऐसा कहीं भी किसी ने नहीं दिया है।
दादाश्री : हाँ, द्रव्यकर्म समझ में नहीं आ सकता ! द्रव्यकर्म को यदि समझ जाए न, तो काम ही हो जाए !