________________
२३४
आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
नहीं रखते न! क्योंकि हम कर्ता हैं ही नहीं। सिर्फ निमित्त हैं बस! निमित्त, सिर्फ हाथ लगा इसलिए, वर्ना 'मैं' कोई हाथ भी नहीं हूँ और पैर भी नहीं हूँ। यह तेरे कर्म का उदय आया है और मेरा हाथ लगा। तुझे ठीक होना था और मेरा हाथ लगा। क्योंकि इतना ही है, मुझे यश मिलना था कि 'दादा ने ठीक कर दिया यह।' ऐसा सब यश मिलता है, तब मुझसे कहते हैं कि 'आप कर रहे हैं।' मैंने कहा, 'ये सब, मैं कुछ नहीं करता हूँ, यश नामकर्म है।' ऐसा मैंने ज़ाहिर किया। अभी तक लोग ज़ाहिर नहीं करते थे। लोग ऐसा नहीं कहते कि 'हमारे यशनाम कर्म से है।' उस घड़ी जब लोग कहते हैं कि, 'आपने मुझे ठीक कर दिया।' तब उन्हें मज़ा आता है। वे मज़ा लेना छोड़ते नही हैं। इस मज़े को नहीं छोड़ते, इसलिए मोक्ष रह जाता है। यहाँ रास्ते में ही मुकाम किया, फिर मोक्ष रह जाएगा न! ध्येय?
प्रश्नकर्ता : रिलेटिव के कई प्रोब्लम होते हैं तो आपसे विधियाँ करवा जाते हैं और फिर वे फलती भी हैं।
दादाश्री : हाँ, मैं निमित्त हूँ। वे ये विधियाँ करवा जाते हैं न और ऐसा है न कि जिन देवों की वजह से यह काम होता है, उन्हें मैं पहचानता हँ। जो निमित्त हैं, उन्हें फोन से खबर पहुँचा देता हूँ कि 'भाई, इनका यह दुःख है तो मिटा दो,' बस। मेरे घर पर कोई बहीखाता नहीं है और दलाली भी नहीं हैं लेकिन मुझे ऐसा अंदर से संकेत हुआ था कि 'आप यह ज्ञान देंगे।' लेकिन इस काल में तो लोगों को बहुत दु:ख रहते हैं, उन दु:खों से वापस यह ज्ञान चला जाएगा न सभी का। तो इस संकेत के आधार पर यह मेरा यशनाम कर्म खिला होगा और उसी आधार पर मैं करता हूँ। वर्ना ज्ञानी कभी भी ऐसा नहीं करते। ज्ञानी ऐसी दखल नहीं करते, 'तुझे यदि मोक्ष में जाना हो तो सीधी बात कर, दूसरी कोई संसारी बात मत करना,' ऐसा ही कहते हैं। और अगर अभी ऐसा कहेंगे तो दूसरे दिन ही चला जाएगा बेचारा। लोग भी कहते हैं, 'नौकरी नहीं है और फिर ऊपर से आप ऐसा कह रहे हैं। लो हम तो चले अपने घर।' इसलिए मैं कहता हूँ, 'तेरे लिए विधि कर देता हूँ, इस ज्ञान को सँभालकर रखना'।
एक भाई का केन्सर ठीक हो गया। ठीक नहीं होता ऐसा भी नहीं