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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
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और क्या है? ये नामकर्म वगैरह सब द्रव्यकर्म कहलाते हैं । नाम-रूप वगैरह सब द्रव्यकर्म कहलाते हैं । फिर ये यश नामकर्म, अपयश नामकर्म, आदेय नामकर्म वगैरह ये सभी द्रव्यकर्म हैं और कोई यश मिले या अपयश मिले तो वह नोकर्म नहीं है । कोई मान मिले, अपमान मिले वह नोकर्म नहीं है। वे सभी द्रव्यकर्म हैं ।
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आत्महत्या करता है न, वह भी नामकर्म है। खुद आत्महत्या करता है न, वह भी नामकर्म के आधार पर करता है ।
कितनी सैद्धांतिक बात है । नहीं? आघात नामकर्म, पराघात नामकर्म । और किस-किसको मारेगा, वह हिसाब लेकर आया है। खुद आत्महत्या कर लेगा, वह भी। ऐसे सब नामकर्म वगैरह बहुत सारी चीजें लेकर आया है।
और ये नामकर्म तो बहुत तरह के हैं । इस शरीर को जो नाम मिला वह भी नामकर्म है। यह शरीर लंबा हो तो भी नामकर्म, ठिगना हो तो भी नामकर्म। ठिगना हो तब लोग क्या कहते हैं कि 'ढाई हाथ का है ।' लंबा हो तब कहते हैं, ‘बहुत लंबा है, बहुत बेवकूफ है।' अगर लंबा हो तो बेवकूफ कहते हैं, ठिगना हो तो ढाई हाथ का कहते हैं। तो भाई, मैं रहूँ कहाँ? तो कहते हैं, ‘कम टू द नॉर्मल। नॉर्मल होगा तो हम कुछ नहीं कहेंगे। साढ़े पाँच फुट की हाइट होगी तो हमें परेशानी नहीं है।'
प्रश्नकर्ता : लेकिन ढाई हाथवाले के लक्षण ?
दादाश्री : ढाई हाथवाले का लक्षण ये लोग क्या बताते हैं कि ढाई हत्था, ढाई का डेढ़ गुना, पौने चार फुट लंबा है । चार फुटवाले को भी हम ढाई हाथवाला कहते हैं, लेकिन और क्या? तो कहते हैं, डेढ़ फुट ज़मीन के नीचे है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् खुद की हाइट उसने इस तरह से पूरी की।
दादाश्री : वह मुआ सब के साथ छल-कपट करके अपनी जेब में डाल दे, ऐसा होता है । इसीलिए ढाई हत्थे की लोगों ने निंदा की है न! यह ढाई हत्था है मुआ, वहाँ मत जाना।
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