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आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
क्योंकि सिर आपका है इसलिए आपका अहंकार वेदता है और आम का रस और पूड़ी खाता है, उसे भी अहंकार वेदता है । शाता और अशाता दोनों को अहंकार वेदता है ।
प्रश्नकर्ता : आत्मा नहीं वेदता ?
दादाश्री : आत्मा को स्पर्श ही नहीं होता यह।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उस वेदना को हम अनुभव करते हैं ।
दादाश्री : वह अनुभव, अहंकार का अनुभव है न! यह बिलीफ वेदना है, यह ज्ञान वेदना नहीं है । नहीं तो अगर ज्ञान वेदना होती तो रात को नींद ही नहीं आती । पूरी रात की रात, कितने ही दिनों तक नींद ही नहीं आती। यह तो बिलीफ वेदना है, इसलिए फिर नींद आ जाती है। रोंग बिलीफ ही है सिर्फ । उसे अहंकार, इगोइज़म वेदता है ।
प्रश्नकर्ता : वेदना किस वजह से होती है ?
दादाश्री : हम लोगों को वेदना देते हैं न, उसी का फल है यह। अगर किसी को भी वेदना देंगे तो वेदना देने से पहले इतना अवश्य मान लेना कि वह वेदना अपने ऊपर ही आनेवाली है। भगवान ने वह ढूँढ निकाला कि यह बहुत ही उल्टा रास्ता है । उसके बाद शुद्ध हो गए।
दादा का अंतर निरीक्षण
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हम सुबह नहा रहे थे। यह पानी डाल रहा था पीठ पर । तो जहाँ खुजली चल रही हो, वहाँ पर अगर गरम पानी ज़्यादा डाला जाए तो क्या होता है?
प्रश्नकर्ता : अच्छा लगता है।
दादाश्री : अच्छा लगता है । फिर मैंने वह देखा। मैंने कहा कि 'अरे, यह क्या है?' तो जवाब मिला कि इस शरीर पर जब गरम पानी डालते हैं, तब इस जगह पर खुजली के जो परमाणु भरे हुए हैं वायु के । वह वात (वायु) होता है न, वह 'वात' जब ज़रा ज़ोर पकड़ लेता है तब खुजली