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यह सब वैज्ञानिक है, धर्म नहीं है। वीतराग विज्ञान ही सर्व दुःखों से मुक्ति दिलवाता है।
प्रकृति पावर चेतन है। जड़ में चेतन का पावर भरा हुआ है इसीलिए जब तक बेटरी में पावर रहता है, तब तक वह सारा कार्य ऑटोमेटिक होता हैं। जैसे ही पावर खत्म हुआ कि सबकुछ बंद! खेल खत्म!
बर्फवाले प्याले में बाहर पानी कहाँ से आया? हवा की नमी से पानी बना और वह चिपक गया प्याले पर। उसी तरह अपने अंदर भी हो गया है। किसी ने किया नहीं है। साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स से हुआ है। अंदर पूरा विज्ञान ही है !
जिस तरह H, + O के इकट्ठे होने से वैज्ञानिक तरीके से अपने आप ही पानी बन जाता है, उसी तरह यह प्रकृति भी वैज्ञानिक तरीके से अपने आप ही बन गई है। इसमें कहीं भी किसी का कर्तापन नहीं है। कितने ही लोग "भगवान ने 'लीला' की" भगवान ने माया रची, ऐसा तरह तरह का कहते हैं लेकिन भगवान ने कोई लीला-वीला नहीं की है, न ही मायाछाया को जन्म दिया है ! भगवान तो भगवान ही हैं ! संपूर्ण अकर्ता, अक्रिय हैं और हर एक जीवमात्र में विद्यमान हैं!
सही विज्ञान समझ में आ जाए तो दोनों अलग ही हैं। संयोगों से प्रकृति खड़ी हो गई है और ज्ञानीपुरुष का संयोग मिल जाए तो वे दोनों को अलग कर देते हैं। उसके बाद प्रकृति अपने आप ही बिखर जाती है !
आत्मा के अलावा सभी कुछ प्रकृति में आ जाता है। अज्ञानता से प्रकृति उत्पन्न होती है। क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष, चिंता-टेन्शन, ईर्ष्या, मेरा-तेरा ये सभी प्रकृति के गुण हैं। पाँच इन्द्रियों के गुण, वे सभी प्रकृति के गुण हैं।
प्रकृति और कुदरत में क्या फर्क है? परिणामित हो चुकी कुदरत, वही प्रकृति है। जब तक H2 और O दोनों अलग हैं, तब तक वह कुदरत कहलाती है और एक होकर H2O यानी कि पानी में परिणामित हो जाए तो वह प्रकृति कहलाती है! अपना शरीर जिन पंच धातुओं से बना है वह
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