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समर्पण
अनंत काल बीता हुआ नहीं प्रकट 'ज्ञानी' के बिना, कौन 'ज्ञानी' के दर्शन से मिल जाए अहो ! अहो ! अनुपम अभेद
आत्म दर्शन, खोले सुदर्शन?
यदि निजदर्शन, विश्वदर्शन !
दृष्टि पड़ते ही दिखाए, उल्टे
को सीधा,
बुझाए अंतरदाह की
अविरत ज्वाला,
ठोकरें रुकी हैं अब, होते ही ज्ञान उजाला, संसारी दुःख अभाव, सनातन सुख पुष्पमाला । 'ज्ञानी' में प्रकटा जो, 'यह' दर्शन निरावरण, अनंत भेद से, प्रदेशों से, दिखा आत्म तत्व, निज दोष दिखाए, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम, 'दर्शन' है केवळ का, अटका चार अंश से 'ज्ञान'
'इस' दर्शन से खुले मोक्ष मार्ग इस दुषमकाल, हर कदम पर दिखाया प्रकाश परम हित काज, बंधन तुड़वाए, दृष्टि बदलाए, 'दादा' दर्शन आज ! आप्तवाणी के रूप में समर्पण जगत् कल्याणार्थ आज !
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