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आप्तवाणी-८
मूलस्वरूप के भान से खुद का उद्धार प्रश्नकर्ता : अर्थात् आत्मा का उद्धार आत्मा को खुद को ही करना है, ऐसा ही हुआ न?
दादाश्री : आत्मा का उद्धार आत्मा को खुद को ही करना है, इसका मतलब क्या है कि, आत्मा तो, जिसका उद्धार हो चुका है ऐसी मूल वस्तु है, लेकिन उसमें अपना जो माना हुआ आत्मा है, प्रतिष्ठित आत्मा है, उसकी मान्यता में वह हक़ीक़त नहीं आती। मूल आत्मा का तो उद्धार हो ही चुका है, लेकिन प्रतिष्ठित आत्मा अर्थात् जो खुद अपने आप को आत्मा मानता है, वही 'खुद' जब ऐसा जान लेगा कि, 'मेरा स्वरूप ही ऐसा है, और मैं तो ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय हूँ', तब फिर 'उसका' भी उद्धार हो जाएगा। यानी खुद खुद का उद्धार, 'वह' इस तरह से ऐसे पुरुषार्थ करे, तभी तो होगा न! लेकिन जब 'ज्ञानीपुरुष' उसे मिल जाएँ, उसे खुद के स्वरूप का भान करवा दें, उसके बाद पुरुषार्थ कर सकेगा और तब 'उसका' उद्धार हो जाएगा।
जय सच्चिदानंद