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आप्तवाणी-८
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हैं। नहीं तो अगर अंदर लालच नहीं हो तो सच्ची चीज़ को ढूंढ निकालेंगे। जिसे मान-तान का, किसी भी तरह का लालच नहीं है, सिर्फ आत्मा को जानने का ही लालच है, उसके अलावा अन्य और कोई लालच नहीं है, वे ढूँढ निकालते हैं।
एक ही दिन यदि इस जगत् के लोग मन-वचन-काया से शांत रहें, खुद अहंकार करके क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं करें, तब भी उनका ज्ञान कितना अधिक बढ़ जाएगा। क्योंकि उन्हें कषायरहिततावाले एक दिन का अनुभव हो जाता है। इन सभी मनुष्यों को तो घंटेभर के लिए भी ऐसा अनुभव नहीं हुआ है। अनुभव किसलिए नहीं होता? क्योंकि उनका चित्त तो क्रोध-मान-माया-लोभ में ही पड़ा रहता है। फिर अनुभव हो पाएगा क्या? अनुभव हो, उसके लिए तो 'चेतन' को जानना पड़ेगा।
जगत् में चेतन कब जाना जा सकता है? प्रश्नकर्ता : चेतन का आप क्या अर्थ करते हैं?
दादाश्री : भगवान। और भगवान, वही चेतन है। इसका अर्थ एक ही होगा न! दो अर्थ नहीं होगें कभी भी। फिर अन्य किसी प्रकार का उल्टा अर्थ समझे तो वह अलग बात है। बाकी सच का तो एक ही अर्थ है न! फिर पीतल को सोना मान बैठे, तो वह चलेगा ही नहीं। बाज़ार में बेचने जाएगा तो पता चल जाएगा।
प्रश्नकर्ता : चेतन को किस तरह से देखें? चेतन को देखने का क्या साधन है?
दादाश्री : उस दृष्टि की ज़रूरत है, उस ज्ञान की ज़रूरत है। प्रश्नकर्ता : वह कहाँ से मिलेगा?
दादाश्री : वह तो, जो मोक्ष का दान देने आए हों, ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' हों, तब वहाँ से वह दृष्टि मिलेगी, वह ज्ञान मिल जाएगा। और वे शायद ही कभी, हज़ारों वर्षों में कभी आते हैं।