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आप्तवाणी-८
आपको जितने प्रश्न पूछने हों उतने प्रश्न पूछो, खुलासा देने के लिए हम तैयार हैं। जो निर्णय करना हो, वह भी यहाँ पर हो सकता है। लेकिन पहले वह निर्णय कर लेना चाहिए, उस समय ही सतर्कता रखनी है । और एक बार निर्णय करने के बाद सतर्कता की कोई ज़रूरत नहीं रहती । इसलिए जल्दबाज़ी में निर्णय करने की ज़रूरत नहीं है । क्योंकि यह तो अनंत जन्मों
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की भूल मिटानी है। अनंत जन्मों से जो भूल मिटी नहीं है, उस भूल को मिटाना है, और कौन-सी भूल हुई है अनंत जन्मों से? अनादिकाल से आत्मस्वरूप का निर्णय होने में भूल होती आई है, उसे मिटाना है । अतः इसमें जल्दबाज़ी करनी ही नहीं चाहिए न !
वह आत्मस्वरूप ऐसा है कि आपकी दृष्टि में नहीं आ सकेगा। अब आपका खुद का ज्ञान कुछ हद तक का ही जानता है, उसकी तुलना में आत्मस्वरूप तो बहुत आगे है। यानी कि आपका खुद का ज्ञान भी वहाँ पर पहुँच नहीं सकेगा। जहाँ पर आपकी दृष्टि नहीं पहुँच सकती, जहाँ पर आपका ज्ञान नहीं पहुँच सकता, ऐसा 'खुद' का स्वरूप है, वह 'आत्मस्वरूप' है!
यानी कि 'मैं कौन हूँ' इसे जानना, वही खुद का स्वरूप है। और उसे सिर्फ ‘ज्ञानीपुरुष' ही 'रियलाइज़' करवा सकते हैं । फिर मरना और जन्म लेना रहता ही नहीं न !! फिर मरना हो तो देह मरेगा, 'खुद' को नहीं मरना है और एक-दो जन्मों में मोक्ष हो जाएगा। सभी साधन बंधन बने
प्रश्नकर्ता : आप ऐसा साधन बता सकते हैं कि जिससे आत्मज्ञान हो जाए?
दादाश्री : साधन तो बहुत सारे जाने हैं, लेकिन जीव साधनों में ही उलझा हुआ है। जो साधन होते हैं न, उन साधनों में ही लोगों को फिर अभिनिवेष (अपने मत को सही मानकर पकड़े रखना) हो जाता है । किसी भी प्रकार का रोग नहीं घुसे, ऐसा जागृत हो, 'अलर्ट' हो, तो कुछ आगे बढ़ सकेगा। बाकी साधनों में ही उलझकर अभिनिवेष हो जाता है। यानी