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आप्तवाणी-८
वह 'खुद' 'परमानेन्ट' है ! नहीं तो टेम्परेरी शब्द ही नहीं होता । यानी कि यह इटसेल्फ ही 'प्रूव' कर देता हैं कि जो दूसरे को टेम्परेरी कहता है, तो वह 'खुद' ‘परमानेन्ट' है। लेकिन उसे 'खुद का' भान नहीं है । फिर भी लोग टेम्परेरी बोलते हैं न! इसलिए हमें पता लगाना चाहिए कि, भले ही उसे इसका भान नहीं है, फिर भी टेम्परेरी कहता है, इसलिए वह 'खुद' 'परमानेन्ट' है। लेकिन यह बात अलग है कि उससे खुद से भूल होती है।
खुद के
गुण कौन से? उसमें भी भूल
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यह ज्ञान खो नहीं गया है, लेकिन ऐसे 'प्लस-माइनस' करे तो यह पूरा ज्ञान वापस से मिल आएगा, लेकिन 'ज्ञानीपुरुष' रास्ता दिखाएँ तब। वर्ना खुद की कल्पना में आएगा नहीं, खुद की मति उस तरफ़ जाएगी नहीं। यह तो, किस तरह से कमाऊँ, किस तरह से ऐसा करूँ, इन विषयों में और पैसों में, इसीमें सारी मति रुक गई है। यानी कि 'खुद' है 'परमानेन्ट', लेकिन उसका उसे ‘खुद' को भान नहीं है। खुद जो है उसका तो भान होना चाहिए या नहीं होना चाहिए?
प्रश्नकर्ता : वह तो खुद को ख़बर होती है न कि उसके खुद के गुण कैसे हैं?
दादाश्री : नहीं, ऐसी किसीको भी ख़बर नहीं होती। ऐसा एक भी मनुष्य नहीं है कि जिसे खुद के गुणों की ख़बर हो । जिन्हें वह खुद के गुण कहता है, वे किसी अन्य के गुण हैं । आपके जितने भी गुण अभी आपको दिखते हैं, वे सभी आपके गुण नहीं हैं, वे आरोपित गुण हैं, फिर भी आप कहते हो कि ये मेरे गुण हैं।
प्रश्नकर्ता : मेरे थोड़े अच्छे गुण भी हैं और थोड़े ख़राब गुण भी हैं।
दादाश्री : नहीं। ये दोनों ही आरोपित गुण हैं । और अच्छे गुण, ख़राब गुण, ये दोनों गलत बात है । दोनों कल्चर्ड गुण है और कल्चर्ड बात है I ये अच्छे-ख़राब, ये आपके गुण नहीं है। आपके गुण तो और ही प्रकार के हैं। वह एक भी गुण आपने देखा नहीं है, जाना नहीं है । लोगों ने भी