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खंड : २
'मैं कौन हूँ?' जानें किस तरह?
अब, फेरे टलें किस तरह? प्रश्नकर्ता : अब ज़रा यह पूछना था कि जन्म-मरण के फेरे टालने के लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : अब पाँचवे आरे में बोले? चौथे आरे में फेरे टल सकते थे ऐसा था, तब वहाँ पर किया नहीं और उस घड़ी चटनी खाने को पड़े रहे। सिर्फ चटनी ही, सिर्फ चटनी का ही शौक़, इसीलिए पड़े रहे। जब वहाँ पर आराम से जन्म-मरण के फेरे टल सकते थे, तब वहाँ पर कुछ किया नहीं, अब अभी यहाँ पर आए हो तो उपाय नहीं रहा, यह चटनी तो मिली, लेकिन उपाय नहीं रहा। अब चटनी छूटेगी, ऐसा लगता है?
प्रश्नकर्ता : शायद छूट भी जाए।
दादाश्री : हाँ, जन्म-मरण के फेरे टालने के लिए 'खुद कौन है' इसका ज्ञान प्राप्त होना चाहिए। समकित प्राप्त होना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : जब तक इस जीवन का हेतु जानेंगे नहीं, तब तक सभी बातें अर्थहीन हैं। वह हेतु ही जानना है। वहाँ पर ही मूल प्रश्न की बात आती है।
दादाश्री : हाँ। यह मूल प्रश्न की बात सही है। ऐसा है न, मानो कि एक सेठ हैं, बहुत ही सुखी इन्सान हैं, मिल के मालिक हैं। जब बातें करें न, तो मिल के दो हज़ार लोग हों न, लेकिन वे सब लोग भी खुश हो जाएँ ऐसी बातें होती हैं उनकी, ऐसी समझदारी होती है। विनय बहुत