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आप्तवाणी-८
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दादाश्री : ऐसा है, सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' खुद अधिक आगे का जानने के लिए सब कर सकते हैं। 'ज्ञानीपुरुष' में जीव-शिव का भेद जा चुका होता है, फिर भी उसके आगे का जानना हो तो दूसरे सूक्ष्म तरीक़ों से आगे का सबकुछ जान सकते हैं। बाकी, तापस तो कुछ भी नहीं जान सकता।
प्रश्नकर्ता : लेकिन सूक्ष्मदेह से भी जीव-शिव का भेद टाल सकते हैं या नहीं?
दादाश्री : नहीं। टाल सकते हैं, लेकिन वह उनकी मान्यता के अनुसार टाला हुआ होता है। साइकोलोजिकल, ऐसा चलेगा नहीं न! यह तो ज्ञान से पद्धतिपूर्वक होना चाहिए, उसके तरीके से होना चाहिए। वेदांत कहो या जैन कहो, अन्य कुछ कहो, लेकिन रास्ता एक ही है। उसका ज्ञान एक ही प्रकार का है।
प्रश्नकर्ता : यानी मनुष्य देह में ही यह जीव-शिव का भेद टूट सकता है, ऐसा है?
दादाश्री : मनुष्य देह के अलावा अन्य किसी भी देह में यह हो ही नहीं सकता।
प्रश्नकर्ता : देवगति में?
दादाश्री : नहीं। वहाँ भी कुछ नहीं हो सकता। देवगति में नहीं हो सकता। देवगतिवाले इतना ही कर सकते हैं कि वहाँ पर देवगति में रहते हुए दर्शन करने जाना हो तो यहाँ पर आ सकते हैं। यानी कि देवगतिवाले यहाँ पर दर्शन करने आ सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : विदेही स्थितिवाला जीव-शिव का भेद मिटा सकता है?
दादाश्री : विदेही? विदेही तो खुद ही शिव हो चुका होता है। जिसमें जीव-शिव का भेद खत्म हो गया है और फिर खुद शिवस्वरूप हो चुका है, वही विदेही कहलाता है। ऐसे अपने यहाँ पर जनकराजा हो चुके हैं।