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आप्तवाणी-८
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आपको समझ में आया न? जीव और आत्मा, ये दोनों एक वस्तु भी नहीं हैं और अलग भी नहीं हैं । 'अलग' कहेंगे तब तो अलग विभाग हो जाएगा, ऐसा नहीं है। और यदि 'एक हैं' कहेंगे तो आत्मा में अशुद्धि उत्पन्न हो गई, आत्मा को भ्रांति उत्पन्न हुई, ऐसा कहा जाएगा, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ है। क्योंकि खुद आत्मा हुआ ही नहीं है। यह तो आत्मा की भ्राँत अवस्था उत्पन्न हो गई है और वही जीव है ।
यानी जीव और आत्मा एक ही हैं। खाना बनाते समय रसोई पकानेवाली कहलाती है और बाहर नाच करते समय नाचनेवाली कहलाती है, लेकिन स्त्री वही की वही है
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मैं, बावो, मंगलदास
अपने यहाँ पहले कहते थे न, हम पूछें 'कौन आया?' तब कहता है, 'मैं आया हूँ।' तब पूछें, 'मैं, लेकिन कौन ? बोल न !' तब कहेगा, 'मैं बावो (साधु) ।' तब पूछें कि, 'बावो कौन?' तब कहेगा, 'मैं बावो मंगलदास ।' तब वह पहचान पाता है । वर्ना सिर्फ 'मैं' ही कहे तो कोई पहचानेगा नहीं। मैं बावो कहे, तो भी वह कहेगा कि, 'यह बावो आया या वह बावो आया?' यानी कि मैं, बावो, मंगलदास, इस तरह से तीन बोलेगा, तब वह पहचानेगा कि 'हाँ, वह मंगलदास बावो ।' उसे ऐसे छवि भी दिखेगी, फिर दरवाज़ा खोलेगा । और फिर अगर मंगलदास दो-तीन हों तो ऐसा कहना पड़ेगा कि, 'मैं बावो मंगलदास, महादेवजीवाला', तब पहचान पाएँगे। यानी मैं बावो मंगलदास । बोलो, अब कितने लोग होंगे? इसमें मैं कौन? बावो कौन? मंगलदास कौन? ऐसा आपने नहीं सुना है? लेकिन आपको काम में नहीं आया । और मैंने तो जैसे ही सुना कि तुरन्त मुझे काम आ गया। एक-एक वाक्य सुनता हूँ और मुझे वाक्य काम में आते हैं। रास्ते पर से मिले तो भी मुझे काम में आ जाता है।
यानी कि 'मैं' कौन है, उसे पहचानना तो पड़ेगा न? और वह उसकी खुद की समझ में फ़िट करना पड़ेगा न, कि 'मैं' कौन है। इसी तरह इसमें 'मैं', वह आत्मा है, इस 'मैं' को पहचान जाए तो हल आ जाए ।