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आप्तवाणी-८
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आत्मज्ञान तो जानना ही पड़ेगा न!' यानी इसका अर्थ क्या है फिर? यानी 'वीतरागों' ने जो 'आत्मा' देखा है, वह आत्मा इन लोगों के लक्ष्य में भी नहीं आया कभी भी! अरे, विचार में भी नहीं आया न!! वह आत्मा अचल आत्मा है और ये लोग जिसे आत्मा कहते हैं, वे 'मिकेनिकल आत्मा' को आत्मा कहते हैं। और 'मिकेनिकल आत्मा', वह सच्चा आत्मा नहीं है, वह डिस्चार्ज स्वरूप है। उसे 'डिस्चार्ज चेतन' कहते हैं। एक 'चार्ज चेतन' और दूसरा 'डिस्चार्ज चेतन'। अतः आत्मा है ज़रूर, लेकिन चार्ज और डिस्चार्ज होता रहता है! इसमें यह बात क्या आपको थोड़ी-बहुत समझ में आती
अतः जगत् जैसा मानता है आत्मा वैसी वस्तु नहीं है। जो आत्मा को जान ले, उसे इस जगत् में कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता। यानी जिन्हें इस जगत् में कुछ भी जानना बाकी नहीं रहा, सिर्फ वही आत्मा को जानते हैं!
हम लोगों ने इसे 'प्रतिष्ठित आत्मा' कहा है। लोग इसे आत्मा मान बैठे हैं, इसे ही लोग स्थिर करते हैं। स्थिर करने के प्रयत्न करते हैं न? लेकिन यह मूलतः चंचल स्वभाव का हैं, स्वभाव से ही चंचल है, 'मिकेनिकल' है। इसे स्थिर करने का प्रयत्न कर रहे हो, यह 'वेस्ट ऑफ टाइम एन्ड एनर्जी' है। पूरा ही जगत् इसे आत्मा मानता है और ऐसा मानते हैं कि इसे स्थिर करेंगे तभी काम पूरा होगा। लेकिन यह सचर है और खरा आत्मा तो अचल स्वभाव का है।
प्रश्नकर्ता : इस 'मिकेनिकल' का 'स्विच' दब ही गया है न?
दादाश्री : उसका 'मिकेनिकल' हो ही चुका है, उसमें आपको कुछ ज़्यादा माथाकूट करने की ज़रूरत ही नहीं है। उसकी ज़रूरत का पेट्रोल पूरा भर ही चुका है, वह चलता रहेगा, आपको पेट्रोल नहीं डालना पड़ेगा, कुछ भी नहीं करना पड़ेगा। आपको इस 'मिकेनिकल' को देखते रहना है। देखना और जानना, वह आत्मा का स्वभाव है।
प्रश्नकर्ता : करना कुछ भी नहीं है?