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आप्तवाणी-८
पहुँचूँ? आप मुझसे मिले, यह ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' है और मिले हैं तो आपका काम हो जाएगा। वर्ना जो नहीं मिल पाता उसका काम नहीं होगा। मिल जाए तो उसके सभी खुलासे हो जाएँगे, वर्ना उसके खुलासे नहीं होंगे।
बाकी, एक दिन सभी ‘साइन्टिस्टों' को इकट्ठा करने का मेरा विचार है और पूरे वर्ल्ड के उन सभी ‘साइन्टिस्टों' को तब पूरी हक़ीक़त खुल्लमखुल्ला बता दूँगा कि 'यह शरीर किससे बना हुआ है? मन क्या है? मन का जन्म किस तरह से होता है? मन का विलय किस तरह से होता है? बुद्धि क्या है? आत्मा क्या है? जगत् किस तरह से चल रहा है?' यानी कि पूरा विज्ञान है यह तो, और लोगों तक पहुँचे तो लाभ होगा, ऐसा
प्रश्नकर्ता : मेरा कहना यही था कि आपके पास 'मैं आत्मा हूँ, मैं असंग हूँ' यह सब ‘एक और एक दो' की तरह स्पष्ट हो जाता है, 'कुछ भी करने की शक्ति ही नहीं है मुझमें', ऐसा स्पष्टरूप से बरतता रहता है, ऐसा पूरी दुनिया को हो जाए तो बहुत लाभ हो जाए न! बड़ा उपकार हो जाए न!
दादाश्री : ऐसा है न, पूरे जगत् का एक सरीखा दर्शन नहीं होता। क्योंकि हर एक के 'व्यूपोइन्ट' अलग-अलग हैं, यानी हर एक को इसकी ज़रूरत नहीं है। हम तो उसे बस इतना ही कहें कि, 'तुझे आत्मा के बारे में समझा देंगे, तब भी दूसरे दिन उसके लक्ष्य में कुछ भी नहीं रहेगा। यह दर्शन भी नहीं पहुँचेगा और यह मेहनत सब बेकार जाएगी।' यह मेहनत अपने हिन्दुस्तान के लिए ही ऐसी मेहनत करना फलदायी हो सकता है,
और फॉरिन के लिए तो कितनी फलदायी होगी? हम लोग उनके 'साइन्टिस्टों' को मार्गदर्शन दे सकते हैं और वे साइन्टिस्ट उनकी भाषा में उन लोगों को दें, तभी यह सब घर-घर में पहुँचेगा। मेरा 'आइडिया' ऐसा है कि पूरे जगत् में 'इस' 'विज्ञान' की बात कोने-कोने तक पहुँचानी है
और हर एक जगह पर शांति होनी ही चाहिए। मेरी भावना, मेरी इच्छा जो भी कहो मेरा सबकुछ यही है!