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आप्तवाणी-८
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धक्का मारने जाएगा तो तेरा मोक्ष चला जाएगा। कोई भी नापसंद संयोग मिल जाए तब यदि उस घड़ी तू उस संयोग को धक्का मारेगा तो तू फिर से उलझ जाएगा। इसलिए उस संयोग को धक्का मारने के बजाय उसे समताभाव से तू पूरा कर। और वह वियोगी स्वभाव का ही है। इसलिए अपने आप वियोग हो ही जाएगा, तुझे कोई झंझट ही नहीं। और फिर भी यदि उस नापसंद संयोग के सामने तू उल्टा रास्ता करने जाएगा तब भी काल तुझे छोड़ेगा नहीं, उतने काल तक तुझे मार खानी ही पड़ेगी। अतः, यह संयोग वियोगी स्वभाववाला है, उस आधार पर धीरज रखकर तू चलने लग।'
गजसुकुमार को मिट्टी की पगड़ी बाँध दी थी न, उनके ससुरजी ने? और उसमें अंगारे रखे। उस घड़ी गजसुकुमार समझ गए कि यह संयोग मुझे मिला है और उसमें, ससुर ने मोक्ष की पगड़ी बंधवाई है, ऐसा संयोग मिला है। अब यह उन्होंने मान लिया, बिलीफ़ में ही माना कि यह मोक्ष की पगड़ी बंधवाई है और उसमें अंगारे रखे। अब नेमीनाथ भगवान ने गजसुकुमार से कहा था कि, "तेरा' स्वरूप 'यह' है और यह संयोग 'तेरा' स्वरूप नहीं है। संयोगों का 'तू' ज्ञाता है। सभी संयोग ज्ञेय हैं।" अतः वे 'खुद' उन संयोगों में भी ज्ञाता रहे, और ज्ञाता रहे इसलिए मुक्त हो गए
और मोक्ष भी हो गया। वर्ना कल्पांत करके भी मनुष्य मर तो जाता ही है। मरने का समय हुआ, और कल्पांत करके मरे, तो कल्पांत करने का फल मिलेगा।
आत्मज्ञान के बाद क्रमबद्धता
प्रश्नकर्ता : जैसे कि बालक की शिक्षा की शुरूआत एक से होती है यानी कि क्रमपूर्वक ही वह आगे बढ़ता है, ऐसा धर्म के बारे में भी नहीं कह सकते?
दादाश्री : ये धर्म में भी ऐसा ही है सब। लेकिन धर्म में, यहाँ पर मनुष्य में आने के बाद वापस बदल जाता है। फिर सबकुछ टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। यहाँ से, मनुष्यगति में से या तो अधोगति में जाता है या ऊर्ध्वगति में जाता है।