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लक्ष्मी की चिंतना (२)
दादाश्री : भोगा हुआ कभी दिखता है? यह तो सिर्फ दिखता है, इतना ही है। जब सामने दिखता है तब भोग नहीं पाते। हमें पावागढ़ कब तक अच्छा लगता है? कि हमने तय किया कि उस दिन पावागढ़ जाना है, तभी से अंदर पावागढ़ के लिए बहुत आकर्षण रहता है। लेकिन जब पावागढ़ जाएँ और देखें, तब वह आकर्षण टूट जाता है।
प्रश्नकर्ता : यानी हमें अभी तक इसका टेस्ट नहीं मिला है? यह जो लक्ष्मी भोगने का या विषय भोगने का टेस्ट अभी तक पूरा नहीं हुआ है इसलिए इनके विचार आते हैं?
दादाश्री : ऐसा है, पिछले जन्म में श्रीमंत का जन्म मिला हो, अब श्रीमंत यानी, स्त्री, लक्ष्मी वगैरह सबकुछ तैयार ही होता है, तब मन ही मन ऊब जाता है कि इससे तो कम उपाधि हो और जीवन सादा हो तो अच्छा। इसलिए फिर विचार भी सारे ऐसे होते हैं और वापस जब गरीबी में जन्म ले तो उसे लक्ष्मी और विषय, वह सब याद आता रहे, वैसा माल भरा हुआ रहता
कैसी-कैसी अटकणे, मनुष्य में! किसी में विषय की अटकण (जो बंधनरूप हो जाए, आगे नहीं बढ़ने दे) पड़ी हुई होती है, किसी में मान की अटकण पड़ी हुई होती है, ऐसी तरह-तरह की अटकणें पड़ी हुई होती हैं। किसी में 'कहाँ से कमाऊँ, कहाँ से कमाऊँ?' ऐसी अटकण पड़ी हुई होती है। यानी इस तरह से पैसों की अटकण पड़ी हुई होती है, इसलिए सुबह उठे तब से उसे पैसों का ध्यान रहा करता है! वह भी बड़ी अटकण कहलाती है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन पैसों के बगैर तो चलता नहीं है न!
दादाश्री : चलता नहीं है, लेकिन लोग वह नहीं जानते कि पैसे किस वजह से आते हैं, और उसके पीछे दौड़ते रहते हैं।