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जागृति, जंजाली जीवन में... (१)
बात डिसाइडेडपूर्वक कह रहा हूँ। कोई बाप भी ऊपरी नहीं है, आप ही हो। ऊपरी, आपके ब्लंडर्स और मिस्टेक्स दो ही हैं। ब्लंडर्स तो, जब 'ज्ञानीपुरुष' तोड़ देंगे तो टूटेंगे। उसके बाद भूलें निकल जाएँगी। नहीं तो ब्लंडर्स निकल सकें ऐसे नहीं हैं। खुद फँसा हुआ है, वह खुद से निकल पाए, ऐसा नहीं है।
समझ हिताहित की... भगवान क्या कहते हैं कि मेरी बात को समझो, जिसे समझने से आपका हित होगा। जिसे हिताहित का भान नहीं हो, उसे मनुष्य कहेंगे ही नहीं न! जो व्यापारी नफा-नुकसान को नहीं समझता, उसे व्यापारी कैसे कहेंगे? यहाँ दुकान लगाकर बैठा है लेकिन नफेनुकसान के व्यापार को नहीं समझे तो क्या होगा? दिवालिया निकालना पड़ेगा! उसी तरह यह हिताहित का भान अर्थात् जिससे इस लोक का हित और परलोक का हित, दोनों संभल जाएँ वह हिताहित का भान कहलाता है। सिर्फ परलोक के हित को संभाले तो एक भी नहीं संभल पाएगा। यह तो, पहले इस लोक के हित की आवश्यकता है, फिर उसमें परलोक का हित समाया हुआ ही होता है। जो इस लोक में हित करता है, उसका परलोक का हित उसमें समाया हुआ ही होता है।
जो खुद का अहित ही कर रहा हो, वह दूसरों का क्या हित करेगा? जो खुद का हित करें, वे लोग दूसरे का, पर का हित कर सकते हैं। ये लोग तो, जैसे मुँह पर अरंडी का तेल
चुपड़ा हो न, ऐसे दिखते हैं। उसका क्या कारण है? 'अरंडी का तेल चुपड़ा है?' तब कहेंगे, 'नहीं, अरंडी का तेल बहुत महँगा हो गया है, वह कहाँ से चुपड़ेंगे?' यह तो भीतर पूरे दिन अजपा (बेचैनी, अशांति, घबराहट) रहा करता है कि ऐसा करूँ या वैसा करूँ? ऐसा करूँ या वैसा करूँ? ऐसा भीतर चलता रहता है! उससे फिर अरंडी का तेल चुपड़े बगैर मुँह पर तेल दिखता है! अरे, संडास जाने की तो ताक़त है नहीं! इस वर्ल्ड में कोई ऐसा