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आप्तवाणी-७
नहीं देता। हम कहें कि, 'कैसी हैं, आपकी पत्नी?' तो वह भाई कहेगा कि, 'यह पत्नी तो, कितने ही पुण्य किए होंगे इसलिए मुझे मिली है' फिर ऐसा बोलता है ! क्यों ऐसा बोलता होगा? आबरू ढँकता है। वह समझता है ' कि कोई जान जाएगा तो मेरी आबरू चली जाएगी।' अरे, आबरू है ही कहाँ ? किसकी आबरू है ? आबरूदार तो कोई दिखता ही नहीं बाहर ! इसे जीवन कैसे कहेंगे? जीवन कितना सुशोभित होना चाहिए ! एक - एक व्यक्ति की सुगंध आनी चाहिए। आसपास कीर्ति फैली हुई हो कि कहना पड़े, 'ये सेठ रहते हैं न, वे कितने सुंदर, उनकी बातें कितनी अच्छी, उनका व्यवहार कितना सुंदर !' ऐसी कीर्ति सब ओर दिखती है? ऐसी सुगंध आती है लोगों की?
प्रश्नकर्ता : कभी-कभार किसी-किसी की सुगंध आती है।
दादाश्री : किसी-किसी इंसान की, लेकिन वह भी कितनी ? तब फिर उनके घर पर पूछो न, तो दुर्गंध मार रहा होता है । बाहर सुगंध आती है लेकिन उसके घर पर पूछो तब कहेंगे कि, 'उसका नाम ही मत लो। उसकी तो बात ही मत करना।' अतः यह सुगंध नहीं कहलाएगी।
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हिन्दुस्तान के मनुष्य ऐसे तो कैसे हो सकते हैं? आपको कैसा लगता है हिन्दुस्तान का डेवेलपमेन्ट ? सभी डेवेलपमेन्ट में सबसे टोपमोस्ट डेवेलपमेन्ट अपने भारत देश का है। यानी कि हम लोग अध्यात्म में संपूर्ण डेवेलप हैं लेकिन भौतिक में अन्डरडेवेलप्ड हैं। भौतिक में अपना संपूर्ण डेवेलपमेन्ट नहीं है, लेकिन अध्यात्मिक में तो हम पूरे डेवेलप्ड हैं। तो अपनी सुगंधी तो होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए?
बच्चे को आप टोकते रहो तो बच्चा विरोध करेगा या नहीं? मनुष्य तो कैसा होना चाहिए? सुगंधीवाला होना चाहिए । लाइफ सुगंधीवाली होनी चाहिए । सुगंधी होगी तो शोभा देगा न? अपने में सुगंधी आए तो जगत् पूरा बदलेगा । लेकिन यह तो खुद में