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जहाँ अंतराय कर्म नहीं रहें, वहाँ पर पूरे ब्रह्मांड का वैभव प्रकट होता है।‘खुद परमात्मा ही है, ' 'ज्ञानीपुरुष' ऐसा स्पष्ट देखते हैं लेकिन तुझे अनुभव में नहीं आता। क्योंकि खुद ने ही खुद के लिए अंतराय डाले हैं, ‘मैं चंदूलाल हूँ' करके... । 'ज्ञानीपुरुष' से मिलने पर वे अंतराय टूटते हैं और भगवान से भेंट हो जाती है !
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जय सच्चिदानंद
डॉ. नीरूबहन अमीन