________________ 310 आप्तवाणी-७ चालाकी शायद न भी हो। चालाकी तो इस काल में दूसरों का देखकर सीख गए हैं। चालाकी संक्रामक रोग है। दूसरों को चालाकी करते देखे तो खुद भी करने लगता है। आपको चालाकी करनी पड़ती है क्या? प्रश्नकर्ता : मुझे उसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। चालाकी करना और कपट, ये दोनों किस प्रकार से अलग हैं? दादाश्री : कपट ऐसी चीज़ है न, कि उसका सामनेवाले को भी पता नहीं चलता और उसे खुद को भी पता नहीं चलता कि अंदर कपट हो रहा है, जबकि चालाकी का तो पता चल जाता है, खुद को भी पता चल जाता है और दूसरों को भी पता चल जाता है। प्रश्नकर्ता : अपने सामने कोई चालाकी करे तो बदले में हमें भी चालाकी करनी चाहिए न, अभी तो लोग ऐसा ही करते thic दादाश्री : इसी प्रकार से चालाकी का रोग घुस जाता है न! जबकि, जिसे 'व्यवस्थित' का ज्ञान हाज़िर रहे, उसे धीरज रहता है। कोई आपके साथ चालाकी करने आए तो आप पिछले दरवाजे से निकल जाना, बदले में आप चालाकी मत करना। हिसाब से बटवारा, उसमें दखलंदाजी क्या? इंसान को कमाने की बहुत जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। कमाई करने में आलस रखना चाहिए। जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि 1978 में कमाने में बहुत जल्दबाज़ी करे तो 1988 में अपने पास जो धन आना होता है, वह अभी 1978 में आ जाएगा, उद्दीरणा हो जाएगी। फिर 1988 में क्या करेंगे? इसलिए बहुत धन कमाने की खटपट नहीं करनी चाहिए। हमें व्यापार निश्चिंत भाव से शांत रूप से करना चाहिए। इस काल में जितनी नीतिमत्ता रखी