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आप्तवाणी-७
अनुभव में आएगा तब आप इस जगत् से छूटोगे, नहीं तो कोई एक जीव भी दोषित लगेगा तब तक आप छूटोगे नहीं।
प्रश्नकर्ता : इसमें सभी जीव आ जाते हैं? सिर्फ मनुष्य ही नहीं, लेकिन कीड़े, मकौड़े सभी आ जाते हैं?
दादाश्री : हाँ, जीवमात्र निर्दोष स्वभाव के दिखने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : दादा, आपने ऐसा कहा है कि जीवमात्र निर्दोष है। अब नौकरी में मैंने कहीं पर भूल की और मेरा ऊपरी अधिकारी ऐसा कहे कि तूने यह भूल की, फिर वह मुझे डाँटेगा-डपटेगा। अब यदि मैं निर्दोष हूँ तो वास्तव में मुझे डाँटना नहीं चाहिए न?
दादाश्री : कोई डाँटे तो, आपको वह नहीं देखना है। हमें 'डाँटनेवाला भी निर्दोष है,' ऐसा आपकी समझ में रहना चाहिए। यानी किसी पर भी दोषारोपण नहीं करना चाहिए। वे आपको जितने निर्दोष दिखेंगे उतना ही ऐसा कहा जाएगा कि आपको समझ में आ गया।
मुझे जगत् निर्दोष दिखता है। जब आपकी दृष्टि ऐसी हो जाएगी तब यह पज़ल सोल्व हो जाएगा। मैं आपको ऐसा उजाला दूंगा और इतने पाप धो डालूँगा ताकि आपका उजाला रहे और आपको निर्दोष दिखता जाए और साथ-साथ पाँच आज्ञा दूंगा। उन पाँच आज्ञा में रहोगे तो वह, जो दिया हुआ ज्ञान है उसे बिल्कुल भी फ्रैक्चर नहीं होने देगा।
'सुनार,' कैसी गुणवान दृष्टि हम पूरे जगत् को निर्दोष देखते हैं।
प्रश्नकर्ता : इस प्रकार से पूरे जगत् को निर्दोष कब देख सकते हैं?
दादाश्री : आपको उदाहरण देकर समझाता हूँ। आप समझ