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अप्रिय माने उसकी प्रगति सैंध जाती है। सामनेवाला अड़चन डाले, वहाँ पर वीतराग रहकर आगे चलने लगे तो मोक्ष में पहुँच पाएगा।
समता का सूक्ष्म स्पष्टीकरण ज्ञानी देते हैं। व्यवहार के लक्ष्यसहित बरतनेवाली समता अहंकार बढ़ानेवाली होती है और वह ढीठ बनने में परिणामित होती है। जहाँ पर आत्मज्ञान है, वहीं पर सच्ची समता बर्तती
इस कलियुग में तो जैसे-जैसे इच्छापूर्ति होती जाती है, वैसे-वैसे अहंकार बढ़ता जाता है और टकराता है। इच्छा के अनुसार नहीं हो तो अहंकार ठिकाने रहता है।
व्यापार में फायदे-नुकसान के असर में इन्वोल्व हो चुके लोगों को 'ज्ञानीपुरुष' एक ही वाक्य में जागृत कर देते हैं कि...
'लेकिन यदि नुकसान हो रहा हो तो दिन में होना चाहिए न? रात को भी यदि नुकसान होता हो तो रात को तो हम जागते नहीं हैं, तो रात को कैसे नुकसान होता है? र्थात् नुकसान के और फायदे के कर्ता हम नहीं हैं, नहीं तो रात को नुकसान कैसे हो सकता है? और रात को फायदा किस तरह होता है? अब, क्या ऐसा नहीं होता कि मेहनत करते हैं फिर भी नुकसान होता है?'
- दादाश्री नुकसान के संयोगों में घिरे हुए लोगों को 'ज्ञानीपुरुष' सुंदर मार्ग दिखाते हैं कि खूब मेहनत करने के बावजूद भी कुछ नहीं हो पाता! नुकसान अधिक हो, तब संयोग साथ नहीं दे रहे ऐसा करके वहाँ पर अधिक ज़ोर लगाने के बजाय उस समय हमें आत्मा के लिए कर लेना चाहिए।
सुनार की नज़र मिलावटवाले सोने की तरफ नहीं, लेकिन उसी तरफ होती है कि उसमें प्योर सोना कितना है। इसीलिए तो वह ग्राहक को डाँटता नहीं है कि इतनी मिलावट कहाँ से कर लाया? ज्ञानी तत्वदृष्टि से देखते हैं, अवस्थादृष्टि से नहीं! फिर जगत् निर्दोष ही दिखेगा न? 'जगत् पूरा ही निर्दोष है। मुझे खुद को निर्दोष अनुभव में आता है,
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