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भोगवटा, लक्ष्मी का (१३)
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साथ में नहीं आते, इसलिए कुछ काम निकाल लो। अब फिर से मोक्षमार्ग नहीं मिलेगा। इक्यासी हज़ार सालों तक मोक्षमार्ग भी हाथ में नहीं आएगा। यह अंतिम 'स्टैन्ड' है, अब आगे 'स्टैन्ड' नहीं है।
पैसों का या इस तरह का संसार का कर्जा नहीं होता, रागद्वेष का कर्जा होता है। पैसों का कर्जा होता तो क्या हम नहीं कहते कि, 'भाई, पाँच सौ पूरे माँग रहा है तो पाँच सौ पूरे दे देना, वर्ना तू छूट नहीं पाएगा!' हम तो क्या कहते हैं कि, 'इसका निकाल करना, पचास देकर भी तू निकाल कर लेना।' उसे पूछना कि, 'तू खुश है न?' तब वह कहे कि, 'हाँ, मैं खुश हूँ।' तो फिर निकाल हो गया।
जहाँ-जहाँ आपने राग-द्वेष किए होंगे, तो वे राग-द्वेष आपको फिर से मिलेंगे।
हिसाबी बंधन, रुपये से या भाव से?
प्रश्नकर्ता : भाव शुद्ध होना चाहिए न? भाव ही बिगड़ जाए तो वापस किस तरह कर पाएँगे?
दादाश्री : यदि भाव शुद्ध नहीं है, तो उसी पर से हम हिसाब लगा सकते हैं कि ये दिए नहीं जा सकेंगे, और भाव शुद्ध हो तो समझना कि ये वापस दिए जा सकेंगे। हमें अपने आप तौल लेना चाहिए।
हमें अड़चन हो तो हमें इतना देखना चाहिए कि अपना भाव शुद्ध रहता है या नहीं? तो ज़रूर दिए जा सकेंगे, फिर चिंता करने जैसा नहीं है।
आपने किसी से पैसे लिए हों, और आपका भाव शुद्ध रहे तो समझना कि ये पैसे अपने से वापस दिए जा सकेंगे, फिर उसके लिए चिंता-वरीज़ मत करना। भाव शुद्ध रहता है या नहीं, उतना