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सामान्य रूप से 'मैं प्रयत्न कर रहा हूँ, कोशिश कर रहा हूँ।' ऐसा गलत घुस गया है। जो अपने आप हो ही जाता है, उसमें करने का कहाँ रहा?
डर और घबराहट तो कहाँ तक रहते हैं? रात को ज़रा सा चूहे ने खड़खड़ाया हो तो, वहाँ पर 'भूत घुसा' कहकर पूरी रात डर के मारे घबराता रहता है ! सिर्फ अफवाह उड़े कि बड़ौदा पर बम गिरनेवाला है, तो सभी चिड़ियाँ उड़ जाती हैं! पूरा शहर खाली कर जाती हैं!
जो कुदरत के गेस्ट के रूप में जीए, उसे क्या भय? कुदरत ज़रूरत के मुताबिक भेज ही देती है। लोगों को कैसा लगेगा?' ऐसा करके भयभीत होते रहते हैं! ऐसा भय कहीं रखा जाता होगा? इन्कमटैक्स की चिट्ठी
आए कि डर के मारे काँप उठता है! 'तार लो,' सुनकर काँप उठता है! निरे आर्तध्यान और रौद्रध्यान में जीता है! यानी वीतराग होना है। जो वीतराग हो जाए, उसके सर्व प्रकार के भय चले जाते हैं ! ज्ञानी में भय क्यों नहीं होता? ज्ञानियों को ज्ञान में ऐसा बरतता है कि यह जगत् बिल्कुल करेक्ट ही है, इसलिए!
कुदरती रूप से अपने आप बुद्धि का जितना उपयोग हो उतनी ही बुद्धि काम की है, बाकी की सारी बुद्धि संताप करवाती है। किसी को हार्ट अटेक आया, ऐसा देखे, तभी से संताप शुरू हो जाता है कि मुझे भी हार्ट अटेक आएगा तो? यह सब अतिरिक्त बुद्धि ! ऐसी बुद्धि झूठी शंकाएँ करवाती है। सिर्फ लुटेरे का नाम आया कि शंका में पड़ जाता है, लुटने की बात तो बहुत दूर रही! यानी कहीं भी किसी से भी घबराने जैसा नहीं है! पूरे ब्रह्मांड के मालिक हम 'खुद' ही हैं। किसी का उसमें दख़ल है ही नहीं। भगवान का भी दख़ल नहीं! जो कुछ अच्छा-बुरा हो रहा है, वह तो अपना हिसाब चुकता करवा रहा है!
जगत् निरंतर भयवाला है, लेकिन भय किसे हैं? जिसे अज्ञानता है उसे, जो शुद्धात्मा हो चुके उन्हें भय कैसा? भय लगे या निर्भयता रहे, दोनों जानने की चीजें हैं।
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