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चिंता से मुक्ति (५)
वे चाचा रो रहे थे, लेकिन मैंने उन्हें दो मिनट में ही पलट डाला। फिर तो 'दादा भगवान ना असीम जय जयकार हो' बोलने लगे ! वे आज सुबह में भी वहाँ रणछोड़ जी के मंदिर में मिल गए, तब बोल उठे, 'दादा भगवान!' मैंने कहा, 'हाँ, वही ।' फिर बोले, 'पूरी रात मैंने तो आपका ही नाम लिया !' इन्हें तो इस ओर मोड़ो तो इधर, इन्हें ऐसा कुछ भी नहीं।
प्रश्नकर्ता आपने उनसे क्या कहा था?
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दादाश्री : मैंने कहा था, 'वे ज़ेवर वापस नहीं मिलेंगे, किसी और तरीके से ज़ेवर मिलेंगे।'
प्रश्नकर्ता : आप मिले, इसका मतलब बहुत बड़ा ज़ेवर ही मिल गया न !
दादाश्री : हाँ, यह तो आश्चर्य है! लेकिन उन्हें यह कैसे समझ में आए ? उनके लिए तो उन ज़ेवरों के सामने इसकी क़ीमत ही नहीं है न! अरे, जब उन्हें चाय पीनी हो तब उनसे मैं कहूँ कि, 'मैं हूँ न, तुम्हें चाय का क्या करना है?' तब वे कहेंगे, 'मुझे चाय के बिना चैन नहीं पड़ता, आप हों या न हों!' इनके लिए क़ीमत किस चीज़ की ? जिसकी इच्छा है उसकी ।