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आप्तवाणी- -६
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दादाश्री : अज्ञान के आधार पर हैं।
अज्ञानता ही इन सबका बेसमेन्ट (आधार) है । अज्ञानता गई कि सारा हल आ गया। अज्ञानता हमारे समझाने से चली जाती है। अज्ञान जाए तो कषाय कम होने लगते हैं, यानी राग-द्वेष कम होने लगते हैं । फिर प्रकृति खाली होने लगती है । है न आसान रास्ता ?
'अक्रम' की बलिहारी
प्रश्नकर्ता : दादा, किंचित्मात्र कुछ भी किए बिना यह प्राप्त हो जाना, वह समझ में नहीं आता ।
दादाश्री : 'अक्रम विज्ञान' हमेशा ज्ञानी की कृपा से प्राप्त होता है, और ‘क्रमिक' में भी कृपा तो है ही, परंतु उसमें गुरु कहें, वैसा करते रहना पड़ता है।‘अक्रम' में कर्तापद नहीं होता । यहाँ तो ज्ञान ही, सीधा - डायरेक्ट ज्ञान। इसलिए बहुत सरल हो जाता है ! इसलिए इसे 'लिफ्टमार्ग' कहा है लिफ्टमार्ग अर्थात् मेहनत वगैरह कुछ भी नहीं करना है। आज्ञा में रहना है उससे नया चार्ज नहीं होगा । फिर विसर्जन होता ही रहेगा । जैसे भाव से सर्जन हुआ था, वैसे भाव से विसर्जन होता रहेगा ।
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अनुभव-लक्ष-प्रतीति
खुद अनादि काल से विभ्रम में पड़ा हुआ है। आत्मा है स्वभाव में, परंतु विभाव की विभ्रमता हो गई । वह सुषुप्त अवस्था कहलाती है। वह जग जाए, तब उसका लक्ष्य बैठता है हमें । वह ज्ञान से जगता है । 'ज्ञानीपुरुष' ज्ञान सहित बुलवाते हैं, इसलिए आत्मा जग जाता है । फिर लक्ष्य नहीं जाता। लक्ष्य बैठा तब अनुभव, लक्ष्य और प्रतीति रहती है । इस लक्ष्य के साथ प्रतीति रहती ही है । अब अनुभव बढ़ते जाएँगे । पूर्ण अनुभव को केवलज्ञान कहा है।
सामीप्यभाव से मुक्ति
अज्ञानता से कषाय खड़े होते हैं। ज्ञान से कषाय नहीं होते ।