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आप्तवाणी-६
यानी कि जब परिणाम आएगा, तब द्वेष उत्पन्न होगा। अभी तो राग है इसलिए मीठा लगता है।
अनुकूलता में कषाय होते हैं? प्रश्नकर्ता : अनुकूल संयोगों में कषायभाव या और कुछ नहीं आता, और प्रतिकूल संयोगों में कषायभाव बहुत आ जाते हैं, तो उसके लिए क्या करें?
दादाश्री : ऐसा है न कि सिर्फ प्रतिकूलता में ही कषाय होते हैं, ऐसा नहीं है। अनुकूलता में बहुत कषाय होते हैं। परंतु अनुकूलता के कषाय ठंडे होते हैं। उन्हें रागकषाय कहते हैं। उसमें लोभ और कपट दोनों होते हैं। उसमें वास्तव में ऐसी ठंडक लगती है कि दिनोंदिन गाँठ बढ़ती ही जाती है। अनुकूल सुखदायी लगता है। परंतु सुखदायी ही बहुत विषम है।
प्रश्नकर्ता : अनुकूलता में तो पता ही नहीं चलता कि यह कषाय भाव है।
दादाश्री : उनमें कषाय का पता नहीं चलता, परंतु वे ही कषाय मार डालते हैं। प्रतिकूलता के कषाय तो भोले होते हैं बेचारे! उसका जगत् को तुरंत ही पता चल जाता है। जब कि अनुकूलता के कषाय, लोभ और कपट तो फलफूलकर बड़े होते हैं ! प्रतिकूलता के कषाय मान और क्रोध हैं। वे दोनों द्वेष में आते हैं। अनुकूलता के कषाय अनंत जन्मों तक भटका देते हैं। बहन, आपको समझ में आ गया न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : इसलिए दोनों गलत है - अनुकूल और प्रतिकूल। अतः आत्मा जानने योग्य है। आत्मा जानने के बाद अनुकूल-प्रतिकूल सबकुछ खत्म हो जाता है!
प्रश्नकर्ता : तो उसके लिए क्या पुरुषार्थ करना चाहिए?
दादाश्री : पुरुषार्थ करने से कुछ भी नहीं होगा। यहाँ पर आ जाना। आपको आत्मा की पहचान करवा देंगे, फिर आपको आनंद-आनंद हो जाएगा और ये सारे कषाय मिट जाएँगे!