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आप्तवाणी-६
वही का वही, लेकिन अज्ञान दशा में बीज के रूप में होता है और ज्ञानदशा में बीज उबालकर खा गए, उसके जैसा होता है। उबालने के बाद बीज को उगने का कहाँ रहा?
हार्टिली पछतावा विचार भीतर पड़ी हुई गाँठ में से फूटते हैं। 'एविडेन्स' मिला कि विचार फूटते हैं। नहीं तो यों तो ब्रह्मचारी जैसा दिखे, लेकिन रास्ते में संयोग मिला कि विषय के विचार आते हैं!
प्रश्नकर्ता : वे विचार आते हैं, वे वातावरण में से ही न? सांयोगिक प्रमाणों के आधार पर ही उसके संस्कार, उसके साथवाले दोस्त, वह सभी एकसाथ मिलता है न?
दादाश्री : हाँ, बाहर का 'एविडेन्स' मिलना चाहिए। उसके आधार पर ही मन की गाँठे फूटती हैं, नहीं तो नहीं फूटतीं।
प्रश्नकर्ता : उन विचारों को स्वीकार करने के लिए मार्गदर्शन देनेवाला कौन है?
दादाश्री : वह सब कुदरती ही है। लेकिन साथ-साथ आपको समझना चाहिए कि यह बुद्धि गलत है, तब से ही वह उन गाँठों का छेदन कर देगा। इस जगत् में सिर्फ ज्ञान ही प्रकाश है। यह मेरे लिए अहितकारी है, ऐसा उसे समझ में आए, ऐसा ज्ञान उसे प्राप्त हो जाए तो वह गाँठों को छेद डालेगा।
प्रश्नकर्ता : परंतु वह तो सभी ऐसा मानते हैं कि 'झूठ बोलना पाप है, बीड़ी पीना खराब है, माँसाहार करना, असत्य बोलना, गलत प्रकार का आचरण, वह सब खराब है।' फिर भी लोग गलत करते ही जाते हैं। वह क्यों?
दादाश्री : 'यह सब गलत है, यह नहीं करना चाहिए', ऐसा सभी बोलते हैं, वे नाटकीय बोलते हैं। सुपरफ्लुअस बोलते हैं, हार्टिली नहीं बोलते। वर्ना यदि वैसा हार्टिली बोलें, तो थोड़े समय में दोषों को जाए